बेबाक
बेबाक
"बस की खिड़की बंद करो बहुत हवा आ रही है।"
"हां मैं कर दूंगी अगर यह अंकल अपना सिगार बुझा दे तो !" आशिमा ने, जो कि एक महाविद्यालय की छात्रा थी और बस में कॉलेज हॉस्टल से अपने घर वापस जा रही थी, अपना पक्ष रखा। लेकिन बस में बैठे बड़े उसकी बात को समझ कर उस व्यक्ति को स्मोकिंग करने से मना करने की बजाय आशिमा को ही खिड़की खोलने से मना कर रहे थे। लेकिन आशिमा भी कहां चुप रहने वालों में से थी। वह खड़ी हो गई और ऊँची आवाज में बोली "अंकल आप अपना सिगार बुझाइये।" आस-पास बैठी सवारी आशिमा के साहस पर हक्का-बक्का रह गई ।
पहले जो उसे मात्र एक छात्रा समझकर उस पर हावी होने की कोशिश कर रहे थे। अब शांत बैठे थे और उन अंकल को मरता क्या न करता अपनी सिगार बुझानी पड़ी और तब जाकर आशिमा ने बस की खिड़की बंद की।