बचपन का दुश्मन राजा
बचपन का दुश्मन राजा
एक समय की बात है, एक मुसाफिर देशाटन पर निकला था। वह चलते चलते पाथर राज्य में पहुंचा और एक सराय में ठहर गया। राज्य के महल और इमारतें बेहद खूबसूरत थीं। मार्ग पक्के और चौड़े थे। अनेक दिवस मुसाफिर राज्य में घूमता रहा। उसने महसूस किया कि राज्य सम्पन्न तो था लेकिन किसी के चेहरे पर खुशी नहीं झलकती थी। सब यंत्रवत अपने कार्य में लगे रहते थे।
दूसरी बात उसने अनुभव की और इस बात से वो हैरान था उसने उस राज्य में किसी बच्चे को नहीं देखा था। सिर्फ जवान और बूढ़े ही दिखाई देते थे। उसने कुछ स्थानीय लोगों से इस विषय पर चर्चा करने की कोशिश की किन्तु लोग बात करने को तैयार न थे। वह बच्चों की तलाश में कई जगहों पर गया किन्तु कहीं कोई बच्चा नहीं दिखायी दिया।
एक दिन वह सड़क पर पैदल घूम रहा था कि उसके बगल से एक बंद घोडा गाड़ी निकली जिसमें से एक बच्चे की रोने की आवाज आयी और आवाज से लगा वह एक नवजात बच्चे के रोने की आवाज़ थी।
मुसाफिर ने गाड़ीवान को गाड़ी रोकने के लिये आवाज दी किन्तु वह नहीं रुका।
संयोग से एक घोड़ागाड़ी उधर आयी और मुसाफिर ने उसे किराए पर लेकर आगे वाली गाड़ी के पीछे चलने को कहा।
चलते चलते वे राजमहल के पीछे पहुँच गये। मुसाफिर को ये देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ, वहाँ एक कक्ष था जिसके बाहर कई महिलायेँ अपने शिशुओं को लेकर कतार में बैठी थीं। कक्ष में दो दरवाजे थे। महिलायें एक एक कर अपने शिशु के साथ कक्ष के एक दरवाजे से प्रवेश करतीं और थोड़ी देर बाद दूसरे दरवाजे से एक नवयुवक या युवती को लेकर बाहर निकलती थीं।
वहीं एक फकीर जैसा आदमी मुसाफिर से टकरा गया। पूछने पर उसने मुसाफिर को बताया कि राज्य का राजा सनकी,आततायी और बचपन का दुश्मन था। उसने कहीं से ऐसा जादुई रसायन प्राप्त कर लिया था जिसकी कुछ बूंदें पिलाकर शिशुओं को कुछ पलों में युवक बनाया जा सकता था और उन को काम पर लगाया जा सकता था।
वह अपने राज्य को जल्दी से जल्दी दुनिया का सबसे अमीर राज्य बनाना चाहता था। उस अमीर राज्य की प्रजा अमीर होगी या नहीं कहा नहीं जा सकता था। फिलहाल तो प्रजा गरीब थी और बच्चों को तुरंत बड़ा करने में उसे कोई आपत्ति नहीं थी।