और आफताब ढल गया बातों बातों मे
और आफताब ढल गया बातों बातों मे
आफताब ढल गया बातों ही बातों में ।
बहुत पुरानी बात है।करीब 50 साल पुरानी उस समय हमारी कॉलोनी में बहुत मकान नहीं हुआ करते थे। और पीछे की तरफ और आगे की तरफ मकानों के बाद जंगल जैसा होता था।
और बहुत दूर-दूर मकान बने हुए थे। मेरी एक फास्ट फ्रेंड जिस जगह रहती थी उसके घर के पीछे भी काफी जंगल था। उसकी और मेरी हम दोनों की ही आदत थी कि, हम अपनी साइकिल उठाकर जंगल में उधर घूमने निकल जाते थे।
वैसे उस समय डरते नहीं थे। डर था भी नहीं। मगर घर से हिदायत दी हुई थी।
कुछ भी हो जाए, कहीं भी जाओ, शाम को 6:00 बजे के बाद घर पर आ जाओ।
1 दिन की बात है हम लोग चल जंगल में गए थे। दोनों जने घूमते घूमते पहले तो साइकिल चला रहे थे। तो बहुत अंदर तक निकल गए।और फिर एकदम समय का भान ही नहीं रहा।
फिर वापस मुड़े।उस समय तो घड़ी भी नहीं होती थी अपने पास। एकदम आकाश की तरफ देखा थोड़ी सी रोशनी आ रही थी।
कि शाम रात पड़ने वाली है। आफताब ढल गया है।हम बातें करते करते चले जा रहे थे।
मैंने एकदम से बोला कम्मो वापस चल ,वापस चल ,वह बोली मज़ा आ रहा है। अभी थोड़ा और घूमते हैं। मैंने कहा नहीं देख सूरज ढल गया है रात पडने वाली है। घर पर डांट पड़ेगी।
बहुत मुश्किल से उसको वापस चलने को राजी करा। घर पहुंचते-पहुंचते 7:30 बज गई थी।बहुत डांट खानी पड़ी। उसके बाद में कसम खाई कि कभी अगर उधर घूमने जाना है तो जल्दी निकल जाएंगे।और जल्दी वापस आएंगे। नहीं तो वापस डांट खाने का बारा आएगा और उधर जाना भी बंद हो जाएगा।
