अतिथि देवो भव
अतिथि देवो भव
हमारे घर में अतिथियों का आगमन था ।
अतिथि देवो भव हम भारतीयों की परम्परा है ,अतिथि भगवान के समान मानकर उनकी हर सुविधा ,उनके रहने खाने -पीने का सारा इंतजाम करना कर्तव्य होता है हमारा।
हमारे घर भी अतिथि आने वाले थे ,शाम के चार तक उनकी ट्रेन स्टेशन पर पहुंच जानी थी ।
घर की साज -साज्जा और सफाई से लेकर हर सुविधा का का ध्यान रखना हमारा कर्तव्य था ,आखिर हमारी इज्जत का सवाल होता है ,फिर नहीं तो यही अतिथि बाहर जाकर हमारी कमियां गिनवाते।
अब बारी थी व्यंजनों की ,अब खाने का मेन्यू चार समय का खाना और अलग -अलग प्रकार के व्यंजन । नाम मेहमानों का स्वाद अपना मेहमानों के नाम पर अपनी भी दावत होनी थी ।
कुछ खाने की चीजें तो जो अपने स्वाद की थीं और अक्सर मेहमानों के आने पर ही बनती हैं वो बनवाई गयीं।
मेरा पसंदीदा मीठा खीर उसकी भी तैयारी की गई ,मुझे खीर बहुत अच्छी लगती है इसलिए उसे बनाने में मैंने अपना भरपूर सहयोग किया ,अंत में काजू ,बादाम ,किशमिश डालकर ठंडा करने को रख दिया गया ।
आखिर अतिथि घर पहुंचे उनका यथा विधि स्वागत हुआ ।
सब अतिथि हमारी आव भगत से बहुत खुश थे ।
रात्रि का भोजन हो चुका था ,अब मीठे की बारी थी ,उन्हें खीर खाने को दी गई ,उन्हें खीर इतनी स्वादिष्ट लगी की हमने उन्हें दुबारा खीर मांग ली यह कहकर की खीर बहुत स्वादिष्ट है ऐसी खीर हमने कभी नहीं खाई ,मना तो कर नहीं सकते थे उन्हें दुबारा खीर खाने को से दी गई ,हमारे अतिथि कहने लगे आप लोग तो रोज खाते होंगे अपने हाथ की खीर कल फिर बना लेना।
अब अतिथियों को क्या बताना था की खीर कोई रोज -रोज थोड़े बनता है ,तुम्हारे जैसे अतिथियों के आने पर ही ज्यादातर खीर बनती है ऐसी।
बाकी उस दिन मेरे लिए खीर नहीं बची, कई बार सोच कर हंसी भी आती है।ऐसा नहीं कि उसके बाद मैंने खीर नहीं खाई ,बहुत बार खाई लेकिन वो स्मृति आज भी मुझे याद है।