हरि शंकर गोयल

Others

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हरि शंकर गोयल

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अपनी अपनी समस्याएं

अपनी अपनी समस्याएं

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लोग दुखी हैं । दुखी होने की वजह भी है । वजह अलग-अलग हैं । सब लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं ‌‌सबकी एक जैसी समस्या नहीं है , अलग-अलग हैं । कोई इसलिए दुखी है कि वह सत्ता से बाहर बैठा है । उसे तो "राज" करने का चस्का लगा हुआ था । वह तो मानकर चलता था कि सत्ता सुंदरी तो उसकी दासी है , उसके सिवा कहां जायेगी । जैसे कि कोई अमीर यही सोचता है । मगर एक दिन उसकी बीवी किसी चायवाले के साथ भाग जाये तो यह बात उस अमीर आदमी को कैसे हजम हो सकती है ? अमीर आदमी की समस्या यह नहीं है कि उसकी बीवी भाग गई । उसकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह एक "चायवाले" के साथ भागी । कम से कम उस बीवी को उसकी "इज्जत" का तो ध्यान रखना चाहिए था ? उसे भागना ही था तो भाग जाती , मगर आदमी तो ढंग का चुनती ? 


अब ऐसे लोग सत्ता सुंदरी को पाने के लिए क्या क्या नहीं कर रहे हैं ? संसद में हंगामा । सड़क पर कोहराम । मीडिया में सुर्खियां और ट्विटर पर गाली गलौज । इतना सब कुछ करने के बाद भी सत्ता सुंदरी वापिस इनके पास नहीं आ रही है । ये लोग सब मिलकर भी उस "रूठी रानी" को नहीं मना पा रहे हैं । बस, इसी समस्या से पागल हुए जा रहे हैं । 


लेखकों की समस्या है कि "क्या लिखें" ? सुबह और शाम एक ही काम । वो तो भला हो प्रतिलिपि का जो रोज एक विषय दे देता है वरना आधे से ज्यादा लेखक तो इसी चिंता में घुलते रहते कि क्या लिखना है ? अब ये अलग बात है कि प्रतिलिपि वाले विषय "भूत" या "रहस्यमई" चुनते हैं । अब जिसको जो पसंद है , वह वही तो चुनेगा । झाड़ू लगाने वाले को अगर कहा जाए कि खाना बना दे , तो क्या वह बना पाएगा ? नहीं ना । तो फिर चिंता कैसी ? जो लिखना है लिख डालिए । पढ़ने वाले सिर पीटें तो पीटें , हमारा क्या बिगाड़ लेंगे वे ? 


हमारी घरवाली हमेशा ही परेशान रहती है । मुझे तो लगता है कि सबकी घरवालियां भी ऐसे ही परेशान रहतीं होंगी । वैसे उनकी समस्या भी बहुत बड़ी है । नाश्ते में क्या बनाएं ? बस, सुबह-सुबह ही इसी समस्या में उलझी रहतीं हैं । जब इस समस्या का समाधान हो जाता है तो "लंच" में क्या बनाऊं ? मैं कहां तक मदद करूं ? वैसे वो इस लायक समझती भी नहीं है हमें । वह तो कहती है कि पता नहीं किस बेवकूफ ने हमें अधिकारी बना दिया, वरना हम जैसे नाकारा और निकम्मों से क्या उम्मीद ? हम भी मुस्कुरा के कह देते हैं कि वो भी आपके पिताजी की तरह ही होगा जिसने हमारा चयन कर लिया । बस, इतना कहते ही मुंह फुला लेती है , पगली । अब आप ही बताओ , मैंने कुछ ग़लत कहा क्या ? लंच की समस्या खत्म होने से पहले डिनर की शुरू । डिनर में क्या बनाऊं ? घरवालियों की ये समस्या विश्व की सबसे बड़ी समस्या है । संयुक्त राष्ट्र को इस समस्या को "विश्व समस्या" घोषित कर देना चाहिए । 


सरकारी कर्मचारियों की अपनी अलग ही समस्या है । काम को कैसे टाला जाए ? छुट्टी लेने के लिए कौन कौन से बहाने बनाए जाएं ? बॉस को कैसे उल्लू बनाएं ? और सबसे बड़ी समस्या कि अपनी जेबें कैसे भरी रहें ? बस, इन्हीं प्रपंचों में फंसे रहते हैं वे बिचारे । अब आप ही बताइए , उसके पास काम करने को समय है क्या ? 


वकीलों की अलग ही समस्या है । किसी केस का फैसला कहीं हो नहीं जाये , बसी इसी जुगाड़ में लगे रहते हैं । तरह तरह के प्रार्थना पत्र लगाकर उसे अटकाये रखते हैं । अगर केस का फैसला हो गया तो एक क्लाइंट हाथ से निकल जायेगा और उसे जोंक की तरह चूसने का अवसर खत्म हो जायेगा । इसीलिए वह तारीख पे तारीख लेता चला जाता है । तारीख लेने के बहाने खोजता रहता है । 


बच्चों की अपनी समस्याएं हैं । अब तो विद्यालय भी नहीं खुल रहे इसलिए चौबीसों घंटे मम्मी पापा की बक बक झेलनी पड़ रही है । ना तो मैडमों के बारे में और ना ही खड़ूस सरों के बारे में चटखारे लेकर आपस में बात करने का मौका मिल रहा है और ना ही होमवर्क नहीं करके लाने के लिए नित नए बहाने बनाने का मौका मिल रहा है । बेचारे ऑनलाइन क्लास के कारण दुखी हो रहे हैं । 


पड़ोसी लोग इसलिए परेशान हैं कि जबसे डोर टू डोर कचरा एकत्रीकरण का काम सरकार ने अपने हाथ में लिया है तबसे कचरा फेंकने को लेकर सुबह-सुबह जो "कहासुनी" हुआ करती थी , वो अब बंद हो गई है । कितना आनंद आता था जब हाथ और आंखें नचा नचाकर लड़ाइयां लड़ी जाती थीं । कमबख्त सरकार से वह सुख भी देखा नहीं गया और वह आनंद भी छीन लिया । ये अच्छा नहीं किया । 



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