अनोखा रिश्ता
अनोखा रिश्ता


आसमान से तो बारिश हो रही है लेकिन आज माहौल गर्मी का ही है। यह माहौल सूरज की गर्मी का नहीं बल्कि दसवीं के परिणाम की गर्मी का था। आज का दिन हर एक विद्यार्थी के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण दिन है। दसवीं जिसके नाम से ही बच्चों को बचपन से डराया जाता है, आज उसके परिणाम की घड़ी थी। रिश्तेदारों ने आज महीने बाद अपने फोन में रिचार्ज कराया था। छात्र बेसब्री से दोपहर के तीन बजने का इंतज़ार कर रहे थे।
इन छात्रों की भीड़ में ही एक था सुमेर, अन्य छात्रों की तरह इसे भी आज अपने परिणाम का इंतज़ार था लेकिन एक दिक्कत थी, सुमेर की बड़ी बहन साक्षी ने पिछले साल ही दसवीं 97% के साथ पूरे जिले में अव्वल स्थान प्राप्त किया था। जब बड़ी बहन के दसवीं में अच्छे अंक आए हो तो भाई के ऊपर अपने आप ही एक दबाव बन जाता है। सुमेर सुबह से इसी डर में था कि अगर उसके 90 % से कम नंबर आए तो उसके माँ - बाप सुमेर को काफी ज्यादा ताने मारेंगे जो सुमेर सह लेगा लेकिन अपनी बहन के तानो को नहीं सह पाएगा क्योंकि जब बहन भाई का मजाक बनाती है तब भाई को अलग ही गुस्सा आता है।
घड़ी की टिक - टिक बढ़ रही थी और सुमेर की धक - धक। घड़ी का छोटा काटा तीन पर आ गया और बड़ा 12 पर आ गया। तीन बजते ही सुमेर ने अपना फोन उठाया और परिणाम देखने के लिए साइट खोली तो पाँच मिनट तक तो वह खुली ही नहीं और जब खुली तो सुमेर अपना परिणाम देखकर स्तब्ध रह गया। सुमेर के अंक थे 80%। सुमेर के यह अंक उसके साथ बैठी उसकी मम्मी और उसकी बहन को पता चले तो सुमेर की मम्मी ने डांटते हुए स्वर में कहा -" कैसे नम्बर लाया है तू ? अपनी बहन से कुछ सिख, पूरे जिले में टॉप किया था उसने।" सुमेर भी काफी उदास महसूस कर रहा था। साक्षी ने कटाक्ष करते हुए कहा - "अरे मम्मी ! मुझे तो पहले ही पता था, यह मेरे जितना समझदार नहीं हो सकता"। यह सुनकर सुमेर चिल्लाने ही वाला था कि तभी उसकी मम्मी की आंखों के डर ने उसे रोक लिया।
सुमेर ओर साक्षी दोनों एक कमरे में बैठे हुए है और साक्षी सुमेर को टॉपर कहकर उसका मजाक बना रही है तभी सुमेर के पापा घर आ जाते है और जब सुमेर के नंबर सुनते है तब गुस्सा हो जाते है और वो भी सुमेर की तुलना साक्षी से करते है। यह सब सुन सुमेर बहुत उदास हो जाता है और अपने कमरे में बैठकर रोने लगता है तभी साक्षी वहां आती है। साक्षी को देखकर सुमेर गुस्से में आता है और कहता है - " तू यहां क्यों आई है ? मुझे चिढ़ाने "? इसपर साक्षी सुमेर से कहती है - " तू इतनी ज्यादा टेंशन क्यों ले रहा है, नम्बर ही तो है, तीन दिन सारे पूछेंगे उसके बाद सब भूल जाएंगे, तू छोड़ "। साक्षी ने सुमेर को ऐसे ही समझाया और सुमेर का दुख कम किया।
जो अभी कुछ समय पहले तक सुमेर को चिढ़ा रही थी, अब वो ही उसे मना रही है। यह कैसा अजीब सा रिश्ता है ?