अनमोल मोती
अनमोल मोती
सुधा तीन साल की थी कि पूरे घर में अपने छोटे-छोटे पैरों से इधर से उधर घूमती फिरती। उसकी प्यारी प्यारी तोतली बातों से सबका मन महक उठता ।
मां बाप दोनों ही अपनी सुधा के साथ जीवन का एक-एक पल जी रहे थे ।उन्हें तो पता ही नहीं चला कब सुधा स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई ।सुधा अपनी लंबी लंबी मांगों की लिस्ट हमेशा तैयार रखती । पापा मुझे आज यह चाहिए ,मम्मी मुझे यह चाहिए और दोनों उसकी हर बात बड़े प्यार से मानते।
स्कूल से सुधा कॉलेज कब पहुंची यह पता ही नहीं चला सुधा । डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन उसे मैथ्स, फिजिक्स और केमिस्ट्री के फार्मूले कभी पल्ले ही नहीं पड़ते ,सबसे दूर भागती और कहां डॉक्टर बनना चाहती है।
हारकर उसने आर्ट्स साइड ली और उसी में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
मां को हर पल यही लगता अरे बेटी बड़ी हो गई है ,इसकी शादी की सोचो। सुधा जब यह सुनती तो तिलमिला जाती "क्या मां ? तुमने मुझे शादी के लिए ही पैदा किया था कि तेईस साल की होते ही तुम मुझे धक्का दे दो ससुराल जाने के लिए "। इस पर पापा मुस्कुरा कर बोले नहीं सुधा "बेटी का असली घर उसका ससुराल ही होता है "।सुधा आंखों में पानी भर कर बोली "आप दोनों मेरे बिना रह पाओगे"।
मां बोलती अरे पगली "मैं भी तो तेरी नानी को छोड़कर तेरे पापा के पास आ गई और जब तेरे जीवन में तेरे सपनों का राजकुमार आएगा तब पूछूंगी ,तू हमें छोड़कर जाएगी की नहीं।"
सुधा कहती" मैं आप दोनों को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली "और दोनों से चिपक जाती।
पापा ने सुधा के लिए एक इंजीनियर लड़का देखा दोनों की सहमति से शादी की बात आगे बढ़ी।
शादी वाले दिन जब सुधा दहलीज पर खड़ी थी तो पापा -मम्मी से बोली "अब रोने का ड्रामा मत शुरू कर देना, हंस कर विदा करो" इस पर मां बोली "चल दी ना हमें छोड़ कर, मिल गया तुझे तेरे सपनों का राजकुमार"।
सुधा दौड़ कर मां के गले लग गई।माता-पिता दोनों अपने सुनहरे मोतियों को इकट्ठा कर रहे थे जिन्हें सुधा आज उनकी दहलीज पर छोड़े जा रही थी, उनकी प्यारी सुधा।