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Anshu Shri Saxena

Children Stories Drama

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Anshu Shri Saxena

Children Stories Drama

अँगूठेराम

अँगूठेराम

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एक बार की बात है, एक राज्य में एक मोहन नामक किसान रहता था। किसान और उसकी पत्नी रधिया के कोई संतान नहीं थी, इसलिये वे दोनों बहुत दुखी रहते थे। बहुत पूजा पाठ और नीम हकीमों के चक्कर लगाने के बाद रधिया ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र सब तरह से स्वस्थ तो था परन्तु उसका क़द बहुत छोटा था, इसलिये मोहन और रधिया ने उसका नाम अँगूठेराम रख दिया।उसके छोटे क़द के कारण सभी अँगूठेराम का मज़ाक़ उड़ाते थे। खेल के समय भी उसे केवल गेंद लाने का काम मिलता क्योंकि वह संकरी छोटी जगह में भी घुस कर गेंद निकाल लाता।

एक दिन उसी राज्य की रानी नदी पर स्नान के लिये गई। तभी उसका क़ीमती नवलखा हार एक कौवे ने अपनी चोंच में उठा कर एक विशालकाय बरगद के वृक्ष के तने में बनी खोह में डाल दिया। राजा रानी सब परेशान हो गये कि कैसे उस खोह से नवलखा हार निकाला जाए। रानी ने कहा “ बरगद के वृक्ष को काट डाला जाए, उसने मेरे हार को अपनी खोह में छुपाने का दुस्साहस किया है “

रानी की बात सुन कर राजा बोले “ वृक्षों में भी प्राण होते हैं, एक हार के लिये इतने पुराने वृक्ष को काटना सही नहीं होगा....मंत्री जी, आप ही कोई उपाय सुझाएँ “

मंत्री जी ने अपनी बात रखी “ महाराज, क्यों न यह घोषणा करवा दी जाए कि जो बरगद की खोह से रानी साहिबा का हार निकालेगा उसका विवाह राजकुमारी से करा दिया जायेगा....ऐसे में राज्य के बड़े बड़े शूरवीर नवलखा हार निकालने का प्रयास करेंगे...तो राजकुमारी जी के लिये सुयोग्य वर भी मिल जायेगा...एक पंथ दो काज “

राजा और रानी दोनों को मंत्री की यह बात पसन्द आ गई और पूरे राज्य में घोषणा करवा दी गई। उड़ते उड़ते यह ख़बर अँगूठेराम तक भी जा पहुँची। उसने बरगद की खोह से हार निकालने का निर्णय ले लिया। 

बड़े बड़े योद्धा और राजकुमारों के साथ अँगूठेराम भी नियत स्थान पर वृक्ष के पास जा पहुँचा। बिना वृक्ष को नुक़सान पहुँचाए उसकी खोह से नवलखा हार निकालना असम्भव सा कार्य था अत: कोई भी राजकुमार अथवा शूरवीर हार निकालने में सफल नहीं हो पाया। 

अब बारी अँगूठेराम की थी। वह झट एक दीपक लेकर वृक्ष की खोह में घुस गया और तुरंत ही रानी का नवलखा हार हाथ में लेकर बाहर आ गया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच , वायदे के अनुसार राजा ने अपनी राजकुमारी का विवाह अँगूठेराम से करने की घोषणा की। 

अब अँगूठेराम, राजकुमारी से विवाह करके प्रसन्नतापूर्वक रहने लगा और मोहन और रधिया के भी दिन फिर गये। 


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