Kunda Shamkuwar

Others

4  

Kunda Shamkuwar

Others

अनगिनत से ख़्वाब ....

अनगिनत से ख़्वाब ....

2 mins
246


उसने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाया....

न चाहते हुए उसने उस हाथ को थाम लिया....वह इस शहर में नयी थी।एक छोटे से गाँव की लड़की जिसकी चमकदार और गहरी आँखों मे अनगिनत से ख़्वाब थे।वह इस तरह के उन्मुक्त या फिर यूँ कहे आज़ाद माहौल में रहने की कभी आदी नही रही। उसे यह सब अजीब लगता था।

इस शहर में अपने रहने के दौरान उसने अपने उन गहरी काली आँखों की चाहत को कई लोगों की निगाहों में देखा है...

उन निगाहों के मतलब को वह बख़ूबी जानती है और....पहचानती भी है...गाँव के बरक्स यह शहर उसे न जाने क्यों ज़ालिम लगता था।जब तब वह उस शहर से भागने की कोशिश करती लेकिन वह सारे ख़्वाब जैसे उसके पैर की बेड़ियाँ बन जाते।

फिर वह अनमनी हो जाती। अगर उसका अनमनापन जानकर कोई सवाल करता तो उसके होंठ फिर से जैसे सील जाते और वह हल्के से मुस्कुरा देती।वह उसका हल्के से मुस्कुरा भर देना बहुतों को शायद उसकी अदा लगे लेकिन हकीक़त में ऐसा नही है।क्योंकि वह जानती है अपनी उस खनकती हँसी को जो बात बेबात आती थी ।लेकिन इस शहर ने उसे नपातुला व्यवहार करना सीखा दिया है।   आज वह जान चुकी है अपनी उस आज़ादी को और आज़ादी के साथ मिली उस जबाबदेही को भी...... 

फिर क्या ?

वह फिर रच बस जाती है उस शहर में और और हौले हौले उन सारे मिज़ाज़ को भी सीख लेती है..... 

आज उम्र के पाँचवे दशक में इंटरव्यू बोर्ड में इंटरव्यूज लेते हुए न जाने उसे यह सब क्यों याद आ रहा है.....  


फिर से इस शहर के मिज़ाज़ के मुताबिक नपा तुला व्यवहार करते हुए उसने अपने उन ख़यालो को झटका और नेक्स्ट कैंडिडेट को बुलाने के लिए इशारा किया ...... 



Rate this content
Log in