अजनबी
अजनबी
कोमल अपने कॉलेज जाने के लिए देहरादून से बस में बैठी ।वह दिल्ली में इतिहास से एम ए कर रही थी ।उसकी बड़ी इच्छा थी कि वह बड़ी होकर एक अच्छी राजनेता बने ।बस में उसके साथ देहरादून से ही ,एक अंकल भी बैठे ।जब बस चल पड़ी तो कोमल अपनी किताबों में मग्न हो गई थी ।वो अंकल बहुत देर से उसको देखे जा रहे थे ।उसे ने अंकल से पूछा "आपको कोई मदद चाहिए क्या?" अंकल ने बोला "नहीं मदद नहीं चाहिए ।तुम कहां जा रही हो ?यही पूछना है।" उसने कहा "मैं दिल्ली पढ़ती हूं वही जा रही हूं ।"
उन्होंने भी कहा "मैं दिल्ली में रहता हूं। मेरा बेटा एक कंपनी में जॉब करता है और बेटी कॉलेज जाती है। तुम भी उसी की उम्र की हो।" कोमल मुस्कुरा कर अपनी किताब में मगन हो गई ।
एक घंटा गुजरने के बाद अंकल ने फिर से बातें करने की कोशिश की।मगर कोमल बातें नहीं करना चाहती थी।फिर भी समय गुजारने के लिए वह वार्तालाप में इच्छा दिखाने लगी। अंकल ने पूछा घर में कौन-कौन है उसने झूठ बोल दिया ।दीदी भैया सब है । उन्होंने पूछा मम्मी पापा क्या करते हैं ?सरकारी स्कूल में टीचर है ।
वह भी झूठ बोला क्योंकि वह अपनी हकीकत छुपाना चाहती थी ।उन्होंने एक कागज पर अपना पता लिख कर कोमल को दिया, कभी जरूरत हो तो मुझे बताना ।
कोमल ने अनमने मन से वह अपने पर्स में रख लिया ।खतौली में जाकर बस रुकी। सर्दी के दिन थे तो उसने एक कप चाय के साथ बिस्किट खाए ।अंकल भी वहां आ गए ।कोमल किसी बहाने से वहां से हटी, फिर थोड़ी देर में बस में जाकर बैठ गई।
नींद का बहाना कर थोड़ी देर सो गई अंकल भी सो गए ।जब उठी तो दिल्ली आने वाला था । दिल्ली आईएसबीटी पर वह उतर गई। अंकल ने उसे बाय बोलना चाहा ,मगर उसने अनदेखा किया और चली गई।
कुछ दिनों के बाद उसके कॉलेज में जहां वे रहती थी दंगे हो गए ।दिल्ली में आए दिन कुछ न कुछ नया रहता ही है ।वहां से सुरक्षित निकलने के लिए उसे कुछ ना सूझा।अचानक फर्स में उसे अंकल का दिया हुआ एड्रेस याद आया ।वह अंकल को फोन करती है ।अंकल कॉलेज के बाहर निकलना मुश्किल हो गया है और यहां रहना भी मुश्किल हो गया है। घर में अभी जा नहीं सकती क्योंकि एग्जाम जल्दी आने वाले हैं। उन्होंने कहा "हां बेटा मैं तुम्हें बेटे के साथ लेने आता हूं "और उसे लेने चले गए। कोमल पूरे दस दिन उनके घर रही और उसको एक बार भी ऐसा न लगा कि वह अनजान के रह रही है। इतना अपनापन उसे आंटी से मिला ।आंटी ने कहा " कोमल तुम मेरी बेटी जैसी हो ,जब मन करे यहां आ जाया करो, दंगा तो एक बहाना था। मगर तुम्हें हमारे साथ रहना था"।।
उसने भी कहा आपने मुसीबत की घड़ी में मेरा साथ दिया इससे बढ़कर और क्या होगा। मां बाप को भी अब चिंता नहीं है क्योंकि आप लोग मेरे साथ हैं। उसने उनको दिल से धन्यवाद दिया और अपनी डायरी वह सब वाक्या लिखा कि अनजान रास्ते में मिले एक अजनबी ने उसकी कितनी मदद की जिससे वह बात भी नहीं करना चाहती थी। न जाने भगवान कब हमारी मदद के लिए किस को भेज देता है।