अधूरा दर्शन

अधूरा दर्शन

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एकबार चाचा-चाची के साथ मां वैष्णव देवी जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।मन बड़ा खुश था बच्चे छोटे-छोटे एक पांच साल का और बेटी सात साल की थी।चाची का परिवार और उनकी छोटी बहन का परिवार भी साथ जा रहा था।

लखनऊ से ट्रेन का सीट रिजर्व था,सो हम अपने परिवार के साथ एक दिन पहले लखनऊ चाचा के घर पहुंच गये थे ।

सबको ख़ुशी थी माता रानी का दर्शन मिले।

ट्रेन अपने सही समय पर छूटी और हम लोग दूसरे दिन आठ बजे सुबह जम्मू पहुंच गये।

बाहर एक टैक्सी वाला मिला जो हमलोगों को कटरा छोड़ दिया । होटल बुक हो गया और सब लोग फ्रेश होने के बाद चढ़ाई के लिए चल दिए।

हमारे ग्रुप में सब नये थे हाथ में डण्डा लिए सबके साथ जय माता दी।जय माता दी ! कहते हुये यात्रा शुरू दिए !

एक- दो किलोमीटर गये होंगे की बच्चे थकने लगे।किसी तरह बारी-बारी से दोनों बच्चों को गोंद में लेकर चढ़ने लगा।चाची के बच्चे बड़े थे धीरे-धीरे जो साथ में चल रहे थे

शरीर में गर्मी होने पर हमने अपना स्वेटर उतार कर चाची के बैग में रख दिया था ।

अर्ध्य कुमारी तक जाते-जाते हिम्मत हार गये बच्चे दोनों। तब वहाँ से दो ख़च्चर किये और बीबी के साथ बिटिया और बेटे के साथ हम चल दिये।

एक ठहराव था जहाँ खच्चरों को चारा वगैरह खिला रहे थे लोग जिससे हमे भी वहाँ रुकना पड़ा कुछ समय के लिए ।

मौसम खराब हो गया अचानक हम सिर्फ बनियान और पैन्ट पहने थे स्वेटर अपना चाची के बैग में रख दिये थे ।

तमाम परेशानियों को झेलकर किसी तरह हम माता रानी के दरबार तक पहुंचे ।

ठण्ड से हालत खराब बच्चे इधर नींद में सच कहूँ।रोना आ रहा था मुझे !

कुछ देर बाद चाचा का परिवार आ गया फिर सब लोग दर्शन के लिए चल दिए।मन से परेशान थे बहुत हम ,किसी तरह दर्शन हुआ।


लोग भैरो नाथ जाने की तैयारी में थे कि बच्चों की दशा देखकर हमनें वहाँ ना जाने का फैसला कर लिया लोगों ने कहा कि वहाँ नहीं जाने से दर्शन अधूरा होता है जिसका कुछ भी फल नहीं मिलता है,मगर मन ही मन मैंने फैसला कर लिया था वहाँ नहीं जाने का ।

माता रानी से हमने माफ़ी मांगी, दो पिट्ठू किये और बहलाते फुसलाते बच्चों को किसी तरह कटरा वापस आ गये।!

मन में आज भी वह परिस्थिति कचोटती है अधूरे दर्शन की ,जब हमे अपनी मजबूरियों पर झुकना पड़ा था।



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