अधूरा बचपन
अधूरा बचपन
आज सोमवार है ।उसे स्कूल समय पर पहुंचना होगा, यही सब सोचती हुयी मोहिनी जल्दी -जल्दी स्कूल आयी । वह स्कूल की को-ऑर्डिनेटर है । स्पोर्ट्स पीरियड में अलमीरा खोलने के लिए पर्स में हाथ डाला तो चाबी न मिली ।तब ध्यान आया कि शनिवार को अपने सबोर्डिनेट(मधु) को चाबी देकर वह घर आ गयी थी । मधु आज एब्सेंट है ।अब घर के कबर्ड से एक्स्ट्रा चाबी लानी पड़ेगी ।घड़ी देखा ग्यारह बज रहे थे अब तो अनिल दुकान पर पहुँच गया होगा वरना उससे ही माँगा लेती ।
मोहिनी का पति (अनिल) का बिज़नेस था ।सुबह ही माँ बेटी स्कूल के लिए निकल जाती और पति लगभग दस बजे निकलता ।डोर कीज़ खोलकर सीधे बैडरूम में घुसी । वहाँ का नज़ारा देख कर मोहिनी को'काटो तो खून नहीं' जैसी हालत थी ।जितनी नफरत उसके अंदर समायी उतने ही आंसू, आँखों के बाहर बरबस ही निकले जा रहे थे ।उसके बेड पर अनिल, कामवाली के साथ रति क्रीड़ा में मसरूफ था ।पहले अनिल पर ज़ोर से चीखी:-"तो ये है तुम्हारी पसंद !घटिया आदमी हो तुम !तभी तो इतनी नीचता पर उतर आये? मेरे सामने तो बड़े धर्मात्मा बनते हो ! मेरे बिस्तर पर इसे लाते तुम्हारी रूह नहीं काँपी? ज़रा भी शर्म नहीं आयी कि तुम एक बच्ची के बाप हो !तुम्हे अपना पति कहते हुए शर्मिंदगी महसूस हो रही है।" गुस्से, शर्म व ग्लानि से काँपने लगी थी ।इससे पहले कि वह और कुछ बोलती,अनिल बहाने बनाने लगा कि ऐसा कुछ नहीं है ।यही मेरे पीछे पड़ गयी । अब मोहिनी और संयम ना रख पायी। सीधा थप्पड़ रसीद कर दिया। गृहस्वामी की दुर्गति के बाद सेविका गृहस्वामिनी के पैरों पर गिर कर क्षमा याचना करने लगी।उसे तो मोहिनी ने उसी वक्त नौकरी से निकाल दिया। बेडरूम से तेज़ी से बाहर निकल वह स्वर्गवासी मम्मी की तस्वीर के सामने बैठ गयी। वह मम्मी -पापा की इकलौती संतान थी ।ये घर, जहाँ उसका बचपन बीता था ।इस घर को माँ का दिया हुआ तोहफा नहीं बल्कि मंदिर समझती आयी थी ।कैसे भागदौड़ कर सुबह के काम निपटाती ।फिर पूजा पाठ करके, बेटी को स्कूल बस में चढ़ा कर, अनिल को जगाती । नाश्ता, लंच सब तैयार कर, स्कूटी से अपने स्कूल भागती ।स्कूल की असेम्ब्ली की जिम्मेवारी उसके अधीन ही आती थी ।इतनी मेहनत व अखंड विश्वास का परिणाम ये मिलना था ।क्यों हुआ ऐसा? क्या उसके प्यार में कोई कमी रह गयी थी ? पिछले साल तक मम्मी थीं।उनकी छत्रछाया में घर -गृहस्थी से निश्चिंत रहती थी । उनके जाने के बाद बहुत अकेली हो गयी थी ।नौकरी, घर, अनिल, लवी कितना कुछ था पर उसने नौकरी और लवी को चुना ।शायद यही उसकी गलती थी ।अनिल पर भरोसा किया था ।उसी आज़ादी का दुरूपयोग घर में हो रहा था और उसे अबतक इसकी कोई खबर ना थी । अनिल निःशब्द था । मोहिनी ने रँगे हाथों जो पकड़ लिया था। जाने कबसे चल रहा था ये सब और कब तक चलता रहता !उसने तो अबतक यही सुना था "जो होता है अच्छे के लिए ही होता है "शायद आज इस नज़ारे से रूबरू होना था तभी उसे अचानक घर आना पड़ा ।यही सोच -सोच कर शिथिल हुयी जा रही थी ।एक नीरव ख़ामोशी और मनहूसियत ने अजब सा माहौल बना दिया था ।घर के दीवारों की ओर देखती गीली आँखों को संयत करने की कोशिश किये जा रही थी कि बेटी के स्कूल बस रुकने की आवाज सुनाई दी ! घर में घुसते ही लवी मोहिनी का उतरा हुआ चेहरा देखकर सवाल करने लगी । "क्या हुआ मम्मा? आप उदास क्यों हो? "उसके सवालों ने मोहिनी को झकझोर दिया था । "कुछ नहीं हुआ बेटा !पापा की तबियत ठीक नहीं थी।इसलिए स्कूल से वापस आ गयी ।"लवी की मासूम निगाहें,मोहिनी के आंसुओं की सच्चाई जानना चाह रही थीं।"आप रोए मम्मा? किसने रुलाया? "
"बस बेटू !नानी याद आ गयी!"
"मुझे भी नानी बहुत याद आती हैं मम्मा ,चलो हम तीनों वही वीडियो देखें जिसकी रिकॉर्डिंग पापा ने की थी, जब पिछले साल आप स्पोर्ट्स वीक में बिजी थीं ।" मोहिनी ने लवी को हाथ -मुंह धोकर आने के लिए कहा , उसकी ओर देखती हुई वापस अपने बचपन को याद करने लगी ।इस उम्र में उसे पिता की कितनी कमी महसूस होती थी ।पिता वकील थे,वकालत अच्छी चल रही थी इसलिए पुश्तैनी मकान में रायपुर में रहते थे और माँ राँची के गर्ल्स कॉलेज की प्रिंसिपल थीं, जहाँ वह माँ के साथ ही रहती थी।बड़ी बेसब्री से गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार करती जब उसे भी और बच्चों की तरह मम्मी -पापा दोनों के साथ रहने मिलता। अपने पापा के लिए बचपन में उठती तड़प ने उसे आज राह दिखा दिया.... नहीं ,नहीं ,वैसा अधूरा बचपन अपनी लवी को नहीं देगी । लवी के लिए वह अनिल के इस गलती को माफ़ करेगी । लवी वाशरूम से आ चुकी थी ।मोहिनी सबकी फेवरेट फ्रूटक्रीम लेकर आ गयी। अनिल ने भी खुद को सहज कर, बेटी की फरमाइश तुरंत पूरी की ।वीडियो कैमरा को टीवी में कनेक्ट कर दिया । माँ को बच्चों सा खिलखिलाता देख, पूरे दिन का अवसाद भूल गयी। मोहिनी पिलो फेंक -फेंक कर नानी -नातिन खेल रहे थे ।अपने हँसते -खेलते परिवार को देख तुष्टि का अनुभव कर रही थी ।बाप-बेटी दोनों वीडियो देख मजेदार किस्से याद कर रहे थे ।वीडियो ख़त्म होते ही लवी सो गयी । अब उसके सामने अनिल क्षमा प्रार्थी था । उसका अपराधी नतमस्तक था ,और वह आज सुबह की कड़ियों में फिर से उलझ गयी थी ।उसे अनिल का, माँ की मृत्यु के पहले हॉस्पिटल में रुकने से लेकर, माँ के लिए की गयी अन्य सारी सेवाएँ याद आ गयी, तभी उसने कुछ निश्चय कर लिया । अनिल हाथ जोड़े कह रहा था "गलती हो गयी..आईन्दा कुछ ना होगा । माफ़ कर दो मुझे "।
"गलती नहीं गुनाह किया है, मंदिर जैसे पवित्र घर को गन्दा किया है तुमने , पर मैं पिता के प्यार से इस बच्ची को मरहूम नहीं रखना चाहती।ये गुनाह आखिरी होगा इस उम्मीद पर माफ़ कर रही हूँ पर याद रखना....मेरी बच्ची मेरी कमज़ोरी नहीं मेरी ताक़त है ।" बहुत हिम्मत बटोर कर इतना ही कह सकी ।अनिल मौके की नज़ाकत समझता हुआ दुकान चला गया और वह बेडरूम की चादर, वहाँ की आबोहवा और सुबह की सारी गंदी यादों के साक्ष्य मिटाने के प्रयास में जुट गयी थी।
