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Rashmi Nair

Children Stories

4  

Rashmi Nair

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आशादीप

आशादीप

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    धर्मपत्नीके गुजर जानेके बाद शिवप्रसाद बहुत दुखी और अकेले हो गये । दोनों का कई सालों का साथ अचानक छूट गया । आज जब व पीछे मुड़कर देखते हैं तो सीर्फ भीगी यादों के सिवा कुछ नहीं था। उनका दिल नहीं लग रहा था । हर वक्त किस्मत को कोसते और उपरवाले से जिंदगी से छुटकारा पाने की दुवाएँ मांगते । वह बस इसी इंतजार में थे कि जल्दी मौत आये और वो जीवन के जंजाल से छूट जाएं । 

   वो तो नहीं आई ,लेकिन एक दिन उनके घरके सामने एक रिक्शा आकर रुका । उसमें से एक पच्चीस-तीस के बीचसकी उमरवाला एक खूबसूरत नवयुवक बाहर आया । हाथ में सूटकेस लेकर खड़ा दरवाजे पर दस्तक देने लगा । बहुत सालों बाद उनके दरवाजे पर दस्तक हुई तो वह चौंक गये । कौन आया ये जानने की चाह उनको दरवाजे की तरफ खींच ले गई । वह दौड़े ,आकर दरवाजा खोला पर आगंतुक को पहचान नहीं पाए । 

शिवप्रसाद : "कौन हो तुम ?"

अजनबी : "दादाजी मैं सलील...आपका पोता."

शिवप्रसाद :"कौन ?"

अजनबी : "दादाजी,मैं हुँ लिलु... मैं हुँ लिलु.बचपनमें आपसे बर्फ के गोले की जिद करता था ,वही लिलु... मैं अब बड़ा होकर डॉ.सलिल बन गया हुँ। "

शिवप्रसाद :( अब पहचानकर) "अरे ! लिलु, तू इतना बड़ा हो गया है । मैं तो पहचान ही नहीं पाया ।"(मुस्कुराते हुए , चश्मा ठीक करते हुए दरवाजा खोलकर ) 

 "अरे! तो ! अंदर आजा ,वहाँ बाहर क्युँ खड़ा है? कहकर उसे अंदर बुला लिया । 

 शिवप्रसाद की आँखों में बरसों बाद खुशी झलकने लगी । आंगन में आते ही उन्होंने उसे गले लगा लिया और अपने नौकर को आवाज लगाई... श्यामू अरे...श्यामू... सुन जरा देख तो कौन आया है ?

श्यामु दौडा़-दौडा़ आया औह उसने कहा "हुकुम मालिक "

शिवप्रसाद: (मुस्कुराते हुए) "अरे मालिक के बच्चे ,जा जल्दी से आँगन में छोटे मालिक का सामान पड़ा है,उठा ला और सुन उपर मेरे बगलवाला कमरा साफ करके उसमें सब सामान संभालकर रखना ।" (शिवप्रसाद सलिल को लेकर घर में चले जाते हैं। )

  दूसरे दिन शिव प्रसाद सुबह ही मंदिर चले गए। उन्होने पूरी श्रृध्दा और लगन से ईश्वर की पूजा की और जो पहले ईश्वर उनके पास जाने की मिन्न्तें करते वही आज पोते के साथ दिन बिताने के लिए दुआ करने लगे । 

   यहाँ घर में श्यामू सलिल की कमरे की सफाई करने आया और काम करते –करते बातें भी कर रहा था । 

श्यामु : "छोटे मालिक, बहुत अच्छा हुआ, आप आ गए । जबसे मालकिन चल बसी, बड़े मालिक हमेशा दुखी और उदास रहते, जीना ही नहीं चाहते । मगर आपके आने के से इस घर में जैसे रौनक वापस आई है । एक बात और कहूं छोटो मालिक ?

सलिल : "बोलो"

श्यामू : "बुरा तो नहीं मानेंगे ?"

सलिल : "नहीं, बोलकर तो देखो "...

श्यामू : "आप उनके जीवन में आशादीप बनकर आये हो,अब अंधेरा करके कभी मत जाना । जबसे आप आये हैं अब जरा सा मुस्कुराने लगे हैं । कल तक तो हंसी खुशी सब भूल चुके थे। कहीं ऐसा न हो कि आपके जाने के बाद कहीं फिर से ... श्यामू ने शक जाहिर किया । 

सलिल : "चिंता मत करो श्यामू । मैं,यहाँ से जाने के लिए नहीं बल्कि यहाँ रहकर गांवके मरीजों का इलाज करने डाक्टर बनकर आया हूं। अब हमारे गाँव के लोगों को दूर शहर में जाने की जरुरत नहीं है क्योंकि यहाँ नया दवाखाना खोलने की सोच रहा हूं। "

श्यामु : बहुत अच्छा खयाल है छोटे मालिक , भगवान आपको कामयाबी और लम्बी उमर दे ।" ... कहकर श्यामु अपना काम खत्म कर चला जाता है । 

   शिवप्रसाद पोते के इस फैसले से बहुत खुश हुए, उन्होने दवाखाने के लिए अपने मकान का निचला हिस्सा राजी-खुशी से अपनी तरफ से दे दिया । अब सलिल की जगह की समस्या अपने आप ही सुलझ गई । सलिल ने कुछही दिनों में सारी तैयारियाँ कर ली । देखते –देखते दवाखाने के उद्घाटन का वह दिन भी आ गया , जिसका उन्हें इंतजार था । शिवप्रसाद ने अपने बेटे और बहु को भी बुला लिया । दोनों ने सही वक्तपर आकर सलिल को चौंका दिया । शुभ मुर्हूत पर अपने बहू-बेटे, अन्य दोस्तों रिश्तेदारों तथा परिचितों की मौजुदगी में दवाखाने का उद्घाटन समारोह शुरु हुआ। दवाखाने का रिबन दादाजीने काटा और बोर्ड का अनावरण बहू-बेटे से करवाया । "आशा दीप " जिसे देखकर सब बहुत खुश हो गए । फिर सबने अंदर प्रवेश किया । शिवप्रसाद ने सलिल का कंधा थपथपाया और कहा ।

शिवप्रसाद : "बेटा, अब चाहे कुछ भी हो , इस "आशादीप"को कभी बुझने मत देना।"

सलिल : "दादाजी, आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा ,आप निश्चित रहें।" (कहकर सलिलने आपने दादाजी और मम्मी पापाको भी मिठाई खिलाई)। 

शिवप्रसाद : "अच्छा बेटे अब तू अपना काम संभाल और दोपहर का खाना खाने आना मत भूलना । मैं तुम्हारे मम्मी पापा को उपरी मंजिल पर ले जा रहा हूँ। हम सब दोपहर खानेसकी मेज पर तुम्हारा इंतजार करेंगे ।"

सलिल : "जी, दादाजी, जरुर आऊँगा । "

शिवप्रसाद : " तो हम चलते हैं । "कहकर बेटे और बहूको लेकर चले गए । 






 


 



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