आजादी की मुहीम
आजादी की मुहीम
वाह ! मां बहुत खूब। आखिर आप मेरा मनपसंद लवबर्ड ले ही आई । पिंजरे को हाथ में लेकर नेहा ने खुशी से उछलते हुए कहा। और पिंजरे को आंगन में टांग कर उनके साथ खेलने लगी । विद्यालय से आने के बाद लव बर्ड के साथ खेलना नेहा की रोज की दिनचर्या बन चुकी थी ।
आज पुणे से नेहा के सारे ममेरे भाई बहन आए हुए थे । जिनके साथ नेहा ने खूब मस्ती की। खूब खेली। सबसे अधिक उसे उनके साथ पतंग उड़ाने में मजा आया। पतंग उड़ाते समय उन्होंने पतंग को उड़ते पक्षियों तक ले जाने की कोशिश की । और सफल भी हुए पक्षियों की चहचहाहट और हवाओं की सरसराहट में पतंग का डोलना सभी खुशियों की सीमाएं लांघ चुका था। बच्चे खुशी में झूमते गाते पक्षियों की तरह खुले आसमान में चहचहा रहे थे । तभी नेहा को लव बर्ड्स का ध्यान आया। वह भी तो पक्षी है लेकिन कैद में है । नेहा तुरंत बरामदे में से पिंजरा छत पर लेकर आई और पिंजरे को खोल दिया। लव बर्ड्स फड़फड़ाते हुए ऐसे फुर्र हो गए मानो सदियों से उनकी आजादी की गुहार आज सुन ली गई हो ।
लेकिन नेहा के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। वह दौड़ कर अपनी गुल्लक ले आई और उसमें रखे पैसे गिनने लगी । अगले दिन उन पैसों से जितने पिंजरे वाले पंछी खरीद कर ला सकती थी ले आई ।और उन्हें फिर छत पर जाकर उड़ा दिया। अब तो हर महीने नेहा की गुल्लक इसी तरह खाली होने लगी। नेहा ने पक्षियों की आजादी की मुहीम जो छेड़ दी थी।