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V. Aaradhyaa

Others

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V. Aaradhyaa

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आई एम होममेकर 24×7

आई एम होममेकर 24×7

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"खाना....?..... अरे.… खाना तो कोई भी बना सकता है।


और ....अगर घर में खाना ना बनाओ तो कोई बात नहीं।

या तो घर में खाना बनानेवाली रख लो नहीं तो बाहर से आर्डर कर लो। अरे, आजकल तो टिफिन सर्विस भी है। जीवनसाथी तो वह होना चाहिए जो कदम से कदम मिलाकर चले। और फिर आजकल यह फंडा बिल्कुल पुराना हो गया कि पति के दिल में जाना है तो पेट के रास्ते से जाना होता है!"


मीनाक्षी ने बड़े ही संयत शब्दों में कहा और उसकी बात से सब सहमत दिखे।


मीनाक्षी सेठी एक ऐसा नाम जो अब अपने परिचय का मोहताज नहीं था। उनके पति का सदर बाजार में सबसे बड़ा ज्वेलरी का शोरूम हुआ करता था। कुछ साल पहले उनके आकस्मिक निधन के बाद मीनाक्षी ने घर की जरूरतों और डूबते हुए व्यापार को बचाने के लिए बिजनेस की दुनिया में कदम रखा था।


आसान नहीं था एक होममेकर का एक गृहणी का घर की जरूरतों के लिए अचानक से व्यापार में अपने कदम रखना और कदम जमाए रखना। और फिर धीरे-धीरे आगे बढ़कर व्यापार को नीचे नहीं गिरने देना।


मीनाक्षी के पति विश्वनाथ जी ने इस बिजनेस को बहुत ही ज्यादा अच्छा रूप दिया था। उनकी दिन रात की मेहनत का परिणाम था कि उन्होंने ज़वेलरी बिजनेस में नाम कमाया और उनका 'अलंकार ज्वेलर्स' मार्केट में अपनी जड़े जमा चुका था। तभी एक रोड एक्सीडेंट में उनकी मृत्यु हो गई और अपने पीछे पत्नी दो बच्चों शुचि ओर शरद को रोता बिलखता छोड़ गए थे। मीनाक्षी की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी।


मध्यमवर्गीय परिवार से आई हुई मीनाक्षी घर तो बहुत अच्छे से संभाल लेती थी। पर बाहर के काम का उसे ना तो कोई अनुभव था और ना ही इसके पहले उसने कभी इसकी जरूरत समझी थी। यहां तक कि उसके परिवार में भी किसी महिला ने काम के सिलसिले में घर से बाहर कदम नहीं रखा था।


यहां तमाम विसंगतियों में एक बात बहुत ही अच्छी थीl वह ये कि जिस वजह से मीनाक्षी ने व्यापार में भी बहुत अच्छा नाम कमाया। और वैसे भी उसे बचपन से गुड़िया को गहने पहनाने फिर तोड़कर तरह तरह से बनाने का शौक था। देखा जाए तो उसने कोई वैधानिक कोर्स तो नहीं किया था पर चुंकि उसे इसमें रुचि थी तो जब तक वह नकली गहने तोड़कर या जिसे तोड़ दिया या जो गहने टूट जाते उससे कुछ न कुछ नया बना देती।


और ..... मीनाक्षी जी का यही शौक उन्हें आज इस ऊंचाई पर ले गया था कि वह अपने मन का काम भी कर रही थी और बहुत अच्छा कर रही थी। घर में पैसे की कमी भी नहीं रही थी। और समाज में एक प्रतिष्ठित नाम भी था।


उन्होंने घर के साथ-साथ दोनों बच्चों की परवरिश भी की थी और समय ऐसा आया था कि अगर वह पूरा समय बच्चों को देती तो घर के कामों को करने में उनका काफी वक्त जाया होता था। इतने कम समय में वह अपने बिजनेस के ज्यादा महत्वपूर्ण फैसले ले सकती थी। इसलिए उन्होंने एक का फुल टाइम मेड रख ली जो खाना बना दिया करती थी और घर की देखरेख भी करती थी। यहाँ तक कि घर के काम से समय बचता वह उनकी भी मदद कर दिया करती थी।


इसी वजह से बिल्कुल जीवन के अनुभव से पका हुआ सच सामने आया था कि अगर एक स्त्री अपने घर से बाहर कदम रखती है तो उसकी दोहरी जिम्मेदारी हो जाती है। ऐसे में अगर वह हेल्पर हाउसमेड की सहायता लेती है तो कोई हर्ज़ नहीं है। और इससे उसकी गृहणी की इमेज या गृहिणी की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती। बस एक सहायक होने से दोनों काम सुचारु रुप से चलाने में और आसानी होती है।


कई बार लोगों की ऐसी अवधारणा होती है कि जो औरतें बाहर काम करती हैं या बिजनेस करती हैं या कोई फूल टाइम काम करती हैं और घर में मेड रखती है।वह खाना रोज खुद नहीं बनाती।घर की साफ सफाई करने के लिए उनको समय नहीं होता।वह ऐसे में घर का काम इग्नोर नहीं करती बस अपनी प्राथमिकताएं खुद तय करती हैँ और उसके अनुसार ही काम करती हैँ।


जब वक्त की कमी होती है तो इंसान प्रायोरिटी के बेसिस पर काम शुरू करता है। उसके द्वारा तय की हुई प्राथमिकता ही उसकी सफलता का मापदंड बन जाता है। वह उसीके के अनुसार अपनी दिनचर्या प्लान करता है। मीनाक्षी जी ने भी वही किया। उनका बिजनेस में काम बढ़ रहा था और वहां उनका उपस्थित रहना बहुत जरूरी था। क्योंकि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी वाली बात थी। इसलिए वह ज्यादा समय अपने बिजनेस को देने लगी थी और उससे जो समय बचता वह उनके दोनों बच्चों के लिए होता था। भले ही उनके बच्चे अपनी मां के हाथ का गाजर का हलवा कम खाया हो या उन्होंने अपनी मां के हाथ का कोई भी खाना रोज नहीं खाया हो लेकिन उनकी मां समय का ऐसा बंटवारा करती थी कि ज्यादा समय में उनके साथ बिता सकें और साथ ही उनकी पढ़ाई में भी मदद कर सकें।


आज शरद एक डॉक्टर था। एक व्यापारी के परिवार में एक लड़के का डॉक्टर होना जिस का पुश्तैनी व्यापार उसके ज्वाइन करने का इंतजार कर रहा हो।यह निर्णय आसान नहीं था। लेकिन मीनाक्षी जी ने शरद के ऊपर कोई दबाव नहीं डाला कि वह उनके साथ मिलकर काम करे बल्कि उसका एक स्वतंत्र व्यक्तित्व विकसित होने दिया और दोनों बच्चों को यह स्वतंत्रता दी कि वह अपनी मर्जी का कैरियर चुन सकते हैं।


उनकी बेटी शुचि ने उनके साथ ज्वेलरी में बिजनेस में हाथ बटाना पसंद किया और वह धीरे-धीरे उनका दायां हाथ बनती जा रही थी।


शरद को अपना क्लीनिक खोलना था। उसी सिलसिले में एक आर्किटेक्ट लड़की नंदिनी से शरद की जान पहचान हुई। और कब दोनों दूसरे को पसंद करने लगे और उनका रिश्ता प्यार में बदलने लगा दोनों को बहुत बाद में पता चला।


जब बात यहां तक पहुंच गई कि शरद और नंदिनी एक दूसरे के बगैर नहीं रह पाते थे तब उन्होंने शादी का निश्चय किया दोनों के माता-पिता जब आपस में मिले तो पता चला नंदिनी के माता-पिता इतना व्यस्त रहते थे कि नंदिनी की पढ़ाई हॉस्टल में हुई और उसी घर का काम बिल्कुल नहीं आता था खाना भी अच्छे से बनाना नहीं आता था।


यह बात अच्छी थी कि पहले ही मीटिंग में लड़की वालों ने अपना पक्ष और अपनी कमी सब सामने लाकर रख दी थी।


"हमारी नंदिनी बाहर का काम अच्छे से कर लेती है, लेकिन खाना बनाना उसे नहीं आता। और बहुत सामान फैला कर रहती है। उसे व्यवस्थित होकर रहना भी नहीं आता!"


नंदिनी की मां अरुणा जी ने अपना पक्ष उनके सामने रखा तो मीनाक्षी ने कहा ,


"जी कोई बात नहीं!"


" मीनाक्षी जी ! मैं उसे घर का काम सीखा नहीं पाई क्योंकि मैं भी काम में व्यस्त रहती थी। इसके अलावा वह व्यवहार कुशल है मेहनती भी। अपने काम में दक्ष है और रिश्तो का महत्व समझती है। बाकी आप लोग देख लीजिए। अगर आपको लगे कि नंदिनी आपके घर की बहू बनने लायक है तो हमें बहुत खुशी होगी शरद को अपना बेटा बना कर!"


बोलकर अरुणा जी ने अपनी बात सामने रखी और मीनाक्षी के चेहरे की तरफ देखने लगी कि उसका जवाब क्या होगा।


"देखिए अरुणा जी! अभी तो एक बात बहुत अच्छी है कि शरद और नंदिनी एक दूसरे को पसंद करते हैं… दोनों बच्चों ने अपना भविष्य एक साथ सोचा हुआ है।हमें तो अपनी राय देनी है। जहां तक नंदिनी के खाना नहीं बनाने वाले का सवाल है या घर नहीं संभालने आने का सवाल है तो मैं पहले ही कह चुकी हूं कि सिर्फ सब खाना बनाने से कोई भी लड़की जीवनसाथी नहीं बन जाती।बल्कि पति पत्नी दोनों को एक दूसरे का साथ देना होता है।


और....


मेरा अनुभव और विश्वास कहता है कि जो लड़की ऑफिस की फाइल व्यवस्थित ढंग से रखती है वह अपने घर को भी जरूर व्यवस्थित रखेगी!"


बोलकर मीनाक्षी जी ने एक बड़ी सी सांस ली और उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए अरुणा जी के चेहरे की तरफ देखने लगी।


अरुणा जी भी मीनाक्षी जी की बात से बहुत प्रभावित थी और काफी हद तक सहमत भी। इसलिए नहीं की बात उनकी बेटी के पक्ष में कहीं जा रही थी बल्कि वह समझ चुकी थी कि मीनाक्षी जी असली गुणों की पारखी है और वह नंदिनी के गुणों को समझ चुकी है।उसका सम्मान भी करती है। जो महिला खुद इतनी मेहनती है वो उसकी मेहनती बेटी को जरुर समझेगी। और घर के कामों को भी बहुत अच्छी तरह करती रही है। लेकिन वह इतनी समझदार हैं कि समय का बंटवारा ऐसे कर रखा है कि उसमें रिश्ते के बाद काम आता है।काम के बाद घर की सार संभाल। एकदम सही ही तो है। घर में सजी-धजी, सुंदर बेशकीमती सजावट हो लेकिन घर में बैठकर हंसने वाले लोग ना हो। और गृहणी का सिर्फ खाना बनाने में ही समय जाया हो तो उसके पास अपनों के साथ बैठकर हंसने बोलने का समय ना हो तो फिर घर भी सराय की तरह लगता है।


घर तो वह होता है जहां सबको बराबरी मिले सबको वक्त मिले। अपने करियर को बनाने का भी वक्त मिले। अपने लिए समय मिले और एक दूसरे के साथ बिताने का भी। सिर्फ गृहणी ही क्यों अपना अस्तित्व गौन करे जबकि घर में सब रहते हैं और एक घर को संभालना घर में रहने वाले हर सदस्य की जिम्मेदारी होती है।


अगर कोई गृहणी महिला सहायिका रखकर अपनी लोगों के साथ ज्यादा वक्त बिता पाती है तो इसमें हर्ज ही क्या है? "


एक तरह से वह दूसरी महिला की भी तो सहायता करती है, … जिसे वह काम पर रखती है और साथ में अपने समय की बचत करके अपने बच्चों के भविष्य के लिए अच्छा काम करती है और बचे हुए समय को बच्चों के साथ और परिवार के साथ बिताती है।


नंदिनी का रिश्ता शरद के साथ तय करने के बाद उसके माता पिता अरुणा जी और मुकेश जी बहुत निश्चिंत नजर आ रहे थे कि यह घर सिर्फ अंदर से खूबसूरत नहीं है बल्कि घर के लोगों का मन भी बहुत खूबसूरत है। वह रिश्ते को समझते हैं और साथ ही यह भी समझते हैं कि प्यार और अपनापन कितना ज़रूरी है।


किसी भी रिश्ते में एक दूसरे को प्यार करना आना चाहिए। लेकिन उस प्यार को बनाए रखने के लिए पैसे कमाना भी बहुत जरूरी है। तभी एक दूसरे की सुविधाओं का भी ख्याल रखा जा सकेगा।


हमारे आसपास समाज में कितनी महिलाएं हैं जिनमें बहुत सारे गुण है। लेकिन वह सिर्फ घर संभालने में उसे अपना कर्तव्य समझकर पूरा कर रही। कि कुछ घर वालों की मदद से कुछ बाहर वालों की मदद से एक ग्रहणी को भी थोड़ा समय मिलना चाहिए। ताकि वह सिर्फ अपने बारे में सोच सके और अपने गुणों को विकसित कर सकें। इसके अलावा गर्व से अपना कोई काम करना शुरू करना चाहती है। कुछ पैसे कमाना चाहती है तो उसे उसमें उसकी मदद जरूर करनी चाहिए। आखिर हर इंसान की अपनी एक पहचान होती है। सिर्फ गृहणी होना या होमेमकर किसी इंसान की पहचान कैसे हो सकती है? घर तो सब का है उस घर से सब की पहचान जुड़ी हुई है। इन सब से अलग एक स्त्री की अपनी पहचान तब बनती है जो आप जब वह अपने अंदर गुणों का विकास करती है और उसे प्रसारित करती है।कई बार पैसे की कमी नहीं होती तो सिर्फ पैसे कमाने के लिए वह घर से बाहर नहीं निकलती। निकलती है खुद को ढूंढने के लिए। अपनी एक पहचान के लिए। अपनी प्रतिभा के विस्तार के लिए और एक स्त्री को उसको इसका मौका बिल्कुल मिलना चाहिए। उसे सिर्फ करके रख रखाव और घर कितना व्यवस्थित है खाना कितना अच्छा बनाती है या फिर उसके घर में सभी लोगों के कपड़ो की स्त्री कितनी अच्छी हुई है। तीज त्यौहार पर वाले दिन किस कैसे करती है। सिर्फ इसी बात पर एक स्त्री को नहीं तोला जाना चाहिए।बल्कि उसकी सफलता के मापदंड में यह भी होना चाहिए उसने अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए कितना प्रयास किया? उसने अपने नैसर्गिक गुणों को कैसे अपनी पहचान बनाया।आखिर इस जिंदगी में एक इंसान को अपनी एक अलग जगह और अपना अस्तित्व स्थापित जरूर करना चाहिए। जीवन की सार्थकता तभी है।


आज गुलाब को लोग अपनी खुशबू की वजह से याद करते हैं।क्योंकि वह उसका एक स्पेसिफिक गुण है।वैसे तो हर इंसान अपने आप में खास होता है। सबमें कोई ना कोई गुण होता है। और उसे समय निकालकर विकास करना ही सही मायने में एक संपूर्ण व्यक्तित्व की पहचान होती है। फिर चाहे वह कामकाजी महिला हो या गृहणी।


मीनाक्षी बिजनेस चला रही हैं और उनके मापदंड के बिल्कुल बदल चुके हैं। अब बदलते समय में कदम से कदम मिलाकर वक्त के साथ चलने वाली महिला की जरूरत है।घर सब का है सिर्फ गृहिणी का नहीं इसलिए घर की देखभाल कर के रख रखाव को सुचारू रूप से चलाने में परिवार के हर सदस्य का सहयोग होना चाहिए। तभी जाकर एक हँसता खिलता परिवार मिलेगा रहेगा और घर की लक्ष्मी का चेहरा भी फूल की तरह खिला रहेगा।



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