अब नमित खुशी खुशी अपने मसालों की दुनिया में रह सकता था।
एक बार फिर अष्टभुजा ने अपना रूप धारण किया
तो क्या मैं इस ड्यूटी पर बैठी रहूं…एक दिन देर से नाश्ता कर लेंगे तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा …कुसुम बोली जल्दी जल्दी घर से ...
जिस माँ ने साड़ी उम्र रसोई में अपनों के लिए गुज़ार दी ,उसे बेटे का रसोई में जाना खल भी रहा और ख़ुशी भी हो रही
क्रॉकरी की अलमारी में जर्मन सकोरा चमचमा रहा था।
दोनों को अभिनन्दन कहकर रंगा जी वहां से चले जाते हैं।