मैं एक दिन टैक्सी से भोपाल जा रहा था। साथ में अन्य सवारियां भी थीं । सब की नजरें और गर्दन झुकी हुई थी। नहीं - नहीं शर्म ...
किस प्रकार हॉस्पिटल के आपा-धापी के बीच थोड़ा समय निकाल कर मोबाइल से प्रिंटआउट ले कर रचना भेज कर आयी थी।
मोबाइल से आँखें हटाकर भी दुनिया देखनी चाहिए।
सोचा कोई बात नहीं गाड़ी में तारीफ़ कर देगा पर उसका पूरा ध्यान मोबाइल पर ही था
वह मेरी बातों को सुन तो रहा था परंतु नज़रें मोबाइल में गड़ाए हुए था।
"पढ़ने का टाइम किसके पास है।" मोबाइल में घुसे-घुसे ही शर्मा जी बोले।