क्रिस्टी लापरवाह थी। ये रोज़ का काम था। कभी कहीं का नल खुला छोड़ देती कभी पहले से पानी चला देती...
"सुनो वो पक्षियों के लिए पानी रखोगी तो मिटटी के बर्तन में रखना ताकि पानी ठंडा बना रहे, बाहर बेहद गर्मी है !"
लेखक: अलेक्सांद्र रास्किन ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
कौन था ये मेहमान ? सूरज का कोई अता पता क्यूँ नहीं था ? ये सब पढ़िये अगले भाग में....
गोविंद प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करता कि 'हे' ईश्वर आज बिक्री अच्छी हो जाए
लेखक : इवान बूनिन अनुवाद : आ। चारुमति रामदास