मैंने मुन्ने के माँ की बात मान ली होती और पीछे के रास्ते भाग गया होता तो शायद आज मै अप
अंकल को मेरे तबीयत की चिंता है या मेरे काम पर ना आने की।
इस तरह दोनों फिर से स्कूल जाने लगे और वे मन लगा कर पढ़ाई करने लगे।
हमेशा की तरह, समस्याओं से जूझती, मज़बूत सी दीवार बनी अपनी दीदी की पुरानी सूरत आज कुछ जानी पहचानी सी लगी।
इसके बाद उसके साथ कभी भी कोई बेवकूफ़ी नहीं हुई।
गालों पर बह आये आँसूओं को आस्तीन से पोंछ खड़ा हो गया विहान- "चलता हूँ, कोचिंग जाऊँगा"