सरहद पे खड़ा हूं तुम आशा निकाल ही रही थी की दरवाज़े पे खड़ा विकी धीमे स्वर में पूछा -- खुश हो न हिन्दीकविता hindikavita sswc उलझने मन की व्यथित मन भूला हुआ खो गया चैन शायद बस तन्हा खड़ा हूं

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