जागा सौरभ, मूर्तमान हो इधर-उधर फिरता अशरीर चमक उठी फिर वनस्पती, कौशिक* का पहने हुए चीर जागा सौरभ, मूर्तमान हो इधर-उधर फिरता अशरीर चमक उठी फिर वनस्पती, कौशिक* का पहन...
सरसों पीली लहलहा रही मानो सारी धरती स्वर्ण हुई स्वर्ग कल्पना साकार हुई जीवन श्वासे सरसों पीली लहलहा रही मानो सारी धरती स्वर्ण हुई स्वर्ग कल्पना साकार हुई ...
जगा अपने अंतर की ज्वाला। धर रूप काली का विकराला! जगा अपने अंतर की ज्वाला। धर रूप काली का विकराला!
आपकी यादों को दिल मे छुपाए रखा है जीना जरूरी नहीं है। आपकी यादों को दिल मे छुपाए रखा है जीना जरूरी नहीं है।
ऑफिस में कार्यरत दो निकम्मों को नियंत्रित करने की कहानी... ऑफिस में कार्यरत दो निकम्मों को नियंत्रित करने की कहानी...