अपनी सी पहचान का ख्वाब था वो अधूरी इच्छाओं का गुबार था अपनी सी पहचान का ख्वाब था वो अधूरी इच्छाओं का गुबार था
बन तमाशाबीन होकर मौन देख रही है दूनिया प्यारी। बन तमाशाबीन होकर मौन देख रही है दूनिया प्यारी।
आओ हम लगाएं सपनों का एक पेड़! रोप दें उसको अपने मन - मंदिर में!! आओ हम लगाएं सपनों का एक पेड़! रोप दें उसको अपने मन - मंदिर में!!
पूरी उम्र गुजारती है, और रह जाती है तन्हा बिल्कुल अकेली, इस जहां में एक बार फिर पूरी उम्र गुजारती है, और रह जाती है तन्हा बिल्कुल अकेली, इस जहां में एक बा...
भर दे एहसास अपने होने का कि मैं हूं ना सिर्फ तुम्हारे लिए, स्त्री बस यही तो चाहती ह भर दे एहसास अपने होने का कि मैं हूं ना सिर्फ तुम्हारे लिए, स्त्री बस यही तो ...