यह कैसा सम्मान
यह कैसा सम्मान
आज हम महिला दिवस मना रहे हैं,
गौर से देखो तो आज विशेष सम्मान दे रहे हैं।
ये सम्मान वास्तविक है या छलावा है,
मुझे तो लगता है यह सच नहीं दिखावा है।
जब हम घर से निलते हैं,
देर होने पर सबका दिल धड़कता है।
न चाहते हुए भी अनहोनी मन में वास करती है,
बेटी, बहु, जल्दी घर आये ये आस होती है।
सही मायने में यह दिवस उस दिन मनाया जायेगा,
जब उसे आरक्षण नही बराबरी का माना जाएगा।
विचार आता महिला दिवस, तो पुरुष दिवस क्यों नही,
पुरुष को सर्वोच्च माना महिला अभी है वही।
एक महिला जब वकील बनती है,
लड़ती है परिवार में समाज से अपने लिए।
एक महिला जब विमान उड़ाती है,
समाज के द्वारा काटे परों को जोड़ती है।
हर स्तर पर स्त्री ही क्यों संघर्ष करती है,
उसे बढ़ने दो सवरने दो वो प्रकृति है।
जिस दिन स्त्री के लिए ह्रदय में सम्मान आ जायेगा ,
उस दिन से प्रत्येक क्षण महिला दिवस बन जायेगा।
एक दिन के सम्मान की मोहताज नही है नारी,
ह्रदय में ,सम्मान सृजन करो विश्वास है नारी।
उसकी शक्तियों को मत ललकारो,
वह शांत सा समुद्र है।
सम्मान, प्रेम, आदर करो,
नहीं तो विनाश निश्चित है।
