ये कैसा प्रेम
ये कैसा प्रेम
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चलती बस-ट्रेन-मेट्रो में
सार्वजनिक रूप से
चुम्बनरत हो जाते हैं वो
बाग-बगीचों के
एकांत अंधेरे कोनों में
आलिंगनरत रहते हैं वो
घर से झूठ बोल कर
सैर-सपाटे पर जाकर
नशे में खो जाते हैं वो
पच्चीस वर्षों के
माँ-बाप के प्यार को
पच्चीस हफ्तों के
आकर्षण पर
यूँ ही लूटा देते हैं वो
क्षणिक आनंद में डूबे
अपने चौगर्द से जान बूझकर कर
अनजान बने रहते हैं वो
ये कैसा प्रेम है उनका
आख़िर किस परिभाषा से
प्रेमी-प्रेमिका कहाते हैं वो
