ये अकिंचन तू अब तक कहां था
ये अकिंचन तू अब तक कहां था
आज निकले सड़क परकहीं पटरी पर
कहीं धुप कड़क पर
क्या तू महफूज़ न वहां था।
ये अकिंचन अब तक तू कहां था।
गुजर बसर तेरा न कहीं हो सका
अपनों के गम में न तू रो सका
कुचले तेरे आश और जिस्म
जीवन के पहिए तले
तू उठाये फिरता है दुनियां का बोझ
अपनों का बोझ न तू ढो सका
क्या वहां नहीँ वो भार जहां तू ढहा था
ये अकिंचन अब तक तू कहां था।
देख तेरे खातिर आज बजट बढ़ रहे हैं
लोग उत्सुकता से गजट पढ़ रहे है
उनके आँखों में दया अब दिखता है
कहीं कोई तेरी दर्दे बयां लिखता है
लगता है पथ बदल जायेगा भूख पिशाचिनी का
जिसके खातिर तूने जो दुःख सहा था
ये अकिंचन अब तक तू कहां था।
दो चार नही तू विशाल क्यों है
कोई दो रोटी दे जाये ये मिशाल क्यों है
बनाये तुमको मोहरा अपने खातिर
वरना तेरी हालत बेहाल क्यों है
तू हर दर्द छुपाता है एक रोटी के लिए
पथराई सी नजरें, तेरा जिस्म कांप रहा था
कौन थी वो दया, जो अब दर्द माप रहा था।
ये अकिंचन अब तक तू कहां था।
ये अकिंचन अब तक तू कहां था।
