यादगार पल
यादगार पल
उमड़ घुमड़ बादल जब आते
मन मयूर को वो हुलसाते
उर में छिपे हुए भावों को
फिर से नवजीवन दे जाते
फिर मन व्याकुल हो जाता
कुछ कहने को कुछ सुनने को
खोजता उसे जो बाँट सके
खट्टे मीठे सब अनुभव को
पर अब पहले सी बात नहीं
वो संगी साथी पास नहीं
जिनके होने से लगता था
मुझ पर आ सकती आँच नहीं
जो पग पग साथ चले मेरे
बांटे सारे सुख दुख मेरे
वो जगह जहाँ पर संग रहे
यादों के सुंदर चित्र गढ़े
उस ठौर बसेरा हो फिर से
फिर वही दिवस और रात घटें
फिर से चांदनी रात में हम
मिलकर दिल की दो बात कहें
फिर से वो हंसी ठिठोली हो
महफ़िल में फिर सुरताल सजे
झूमें गाऐं हम सब मिलकर
गर बीते वो लम्हात मिले।
