STORYMIRROR

Sandeep Kumar

Children Stories

3  

Sandeep Kumar

Children Stories

वसुधैव कुटुंबकम

वसुधैव कुटुंबकम

1 min
365


फुल पत्ते और नदियों से

धरा ऐ सुंदर लगती है

छोटी-छोटी बसी बस्तियां

नदी की जल से चलती हैं।।


तपन ऐ प्राणी जीवन की 

बिन जल ना मिटाती है

एक दूसरे से मिलकर ही

जीवन सब की चलती है।।


जैसे सूरज चल देती है

जग को रोशन करने को

वैसे चंदा भी निकलती है

प्यार मोहब्बत पाने को।।


धारा की पवित्र मिट्टी पर

नूर अपना बरसाने को

ओशो के बिंदुओं पर

रूह अपना पाने को।।


फूल पत्तों से लिपट कर

मोती सा चमक जाने को

उठा ले हंसकर कोई भी

वह अमृत रूप सजाने को।।


नभ से नयन तक शीतल रहे

शीतल रूप धारण करने को

पाने की जिज्ञासा हो किसी को

दिल की बानी निकल जाने को।।


वसुधैव कुटुम्बकम पा जाने को

जग जीवन परिवार हो जाने को

वक्त के छाए में धूप खिल जाने को।।

वक्त के छाए में धूप खिल जाने को।।




Rate this content
Log in