वृत्तियाँ
वृत्तियाँ
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मार्ग के अवरोध को,
तू दूर कर दे,
वृत्तियों के तमस को,
तू चूर कर दे।
बन न सकें,
राम और कृष्ण तो,
बस मनुष्य ही रहें,
मजबूर कर दे।
जीवन मिला सत्कर्म,
और संघर्ष को,
नहीं भोग व निज स्वार्थ के,
उत्कर्ष को।
तू पार्थ है,
श्रीकृष्ण जैसे सारथी का,
छू ले बढा,निज हाथ,
आकाश के अमर्ष को।
