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Manu Sweta

Others

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Manu Sweta

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वृक्ष

वृक्ष

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आज फिर इंतज़ार है

उस हरियाली का

जो सालो पहले हुआ करती थी

तब जंगल मे

कितनी खुशहाली होती थी

चारो ओर जानवरों का

कोलाहल हुआ करता था

तब हमारा दबदबा भी

ज्यादा हुआ करता था।

जिस तरफ से निकल जाए

जंगल खाली हो जाते थे,

तब अच्छा लगता था

लेकिन अब ये

खालीपन अच्छा नही लगता,

बिना जानवरों के जंगल

अच्छा नही लगता,

मानव ने अपने स्वार्थ में

जंगलो को दिया है काट

अब देखो इनके शहरी ठाट,

लेकिन कितने दिन तक

कभी तो इन्हें होगा अहसास

कि जंगल होते कितने खास,

यदि जंगल न होंगे धरा पर

असंतुलन हो जाएगा धरा पर,

बिना वृक्षो के ये जिंदा कैसे रह पाएंगे

बस यूं ही घुट घुट कर मर जाएंगे।



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