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Supriya Singh

Others

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Supriya Singh

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वृद्ध मन की बात...

वृद्ध मन की बात...

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अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस विशेष


हुए बुजुर्ग तो क्या हुआ, हम भी हैं इंसान,

हैं तुम्हारे परिवार का हिस्सा हम भी जान।


ईश्वर रूप में हैं हम भी हमको भी पहचान,

जो तुझमें है बसता मुझमें भी है बसा ये मान।


न दे सके प्यार अगर तो न कर तिरस्कार,

न कर सके सद व्यवहार तो न कर दुर्व्यवहार।


वक्त नहीं है करके बहाना फुसला न हर बार,

दो पल भी यदि हो सके तो मेरे संग गुजार।


देखभाल यदि न कर पा तो कुछ पल ही निहार,

देख के खुश हो लेता हूँ कि खुश है सब परिवार।


सीखा था जब तुमने चलना उंगली थाम बार-बार,

बनेगा मेरा सहारा तू मन सोच हुआ था गुलजार।


वृद्धावस्था वश मैं शायद अब हो गया लाचार,

दे दो सहारा यदि थोड़ा तो होगा बहुत आभार।


बूढ़ी हुईं आँख भी अब तो नज़र न आता साफ़,

बूढ़े की लाठी बन जाओ दिल में जगी है आस।


कमर झुक गयी है अब मेरी चलना नहीं आसान,

थाम न पाओ हाथ यदि तो ला दो एक लाठी काठ।


याद नहीं रहता अब पल में भूल जाता हूँ बात,

दाँतो ने भी छोड़ दिया है अब इस बूढ़े का साथ।


कानों से न सुनाई देता चाहे ऊँची हो आवाज़,

कंपकंपाते हाथों से अब छूट जाता समान।


कड़वी दवाइयाँ खाते-खाते मुंह बिगड़ा स्वाद,

अकेले रहते-रहते मन ग्रस्त हो जाता अवसाद।


नींद कभी तो बहुत है आती कभी जागूँ सारी रात,

सपनों ने भी आना छोड़ा नहीं करते मुलाकात।


तरह-तरह की बीमारियों से जीना हुआ दुश्वार,

संगी-साथी, सहपाठी सब गये स्वर्ग सिधार।


कोई भी अब न पास फटकता जान वृद्ध-लाचार,

मौत की तकते हुए राह बस करता हूँ इंतज़ार।


वो भी शायद भूल गई है अब मेरा घर-द्वार,

चाह यही है अब बस विदा हो जाऊं छोड़ संसार।


आस यही है मन में मेरे न हो कोई वृद्ध लाचार,

स्वस्थ रहें सब मस्त रहें फले-फूलें सब संसार...



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