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कल्पना रामानी

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कल्पना रामानी

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खुदा से ख़ुशी की -ग़ज़ल

खुदा से ख़ुशी की -ग़ज़ल

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खुदा से खुशी की लहर माँगती हूँ। 

कि बेखौफ हर एक घर माँगती हूँ।


अँधेरों ने ही जिनसे नज़रें मिलाईं

उजालों की उन पर नज़र माँगती हूँ।


जो लाएँ नए रंग जीवन में सबके

वे दिन, रात, पल, हर पहर माँगती हूँ।


जो पिंजड़ों में सैय्याद, के कैद हैं, उन

परिंदों के आज़ाद, पर माँगती हूँ।


है परलोक क्या ये, नहीं जानती मैं

इसी लोक की सुख-सहर माँगती हूँ।


करे कातिलों के, क़तल काफिले जो

वो कानून होकर, निडर माँगती हूँ।


दिलों को मिलाकर, मिले जन से जाके 

हर एक गाँव में, वो शहर माँगती हूँ।  


बहे रस की धारा, मेरी हर गज़ल से

कुछ ऐसी कलम से, बहर माँगती हूँ।

के

करूँ जन की सेवा, जिऊँ जग की खातिर

हे रब! ‘कल्पना’ वो हुनर माँगती हूँ।   


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