वो दिन सुहाने बचपन के
वो दिन सुहाने बचपन के
वो बारिश का पानी
पानी में भीगना याद है।
वो दोपहर में सोने का
झूठा बहाना याद है
घर की छत पर वो
जाड़े की धूप याद हैं।
बचपन के यारों के
घर रोज़ जाना याद है।
गर्मियों की घोर धूप में
नींद से जी चुराना याद है।
फ्रिज में से बर्फ चुपके
चुराके खाना याद है।
दादी नानी का डांट
से बचाना याद है।
सावन के मेलों में
दोस्तों संग जाना याद है।
वो परीक्षा के दिनों में
रेडियो संग पढ़ना याद है।
खेलने के बाद गन्दे
कपड़े छुपाना याद है।
टिफिन का खाना
दोस्तों को बांटना याद है।
वो दीवाली के दिनों में
पैसे जमा करना याद है।
गलीं में खेलते शीशे
तोड़के छुप जाना याद है।
वो बचपन के दिन
वो गुज़रा ज़माना याद है।