वनमानुष से मित्रता
वनमानुष से मित्रता
शिकार की शौकीन चली,
चली एक टोली
घने बहुत घने जंगल में
कई अद्भुत किस्म की
प्रकृति का सामना करते हुए
भटक गई वह उसी वन में।
राह ढूंढने के चक्कर में,
माजरा उलझ गया
और मैडम मारिया से,
उस का काफिला बिछड़ गया।
घना जंगल अकेली मारिया !
सोचो ! उसे कुछ सूझ नही रहा था
धीरे धीरे शाम गहराने लगी
और मारिया की सांस भी ऊपर नीचे जाने लगी।
तभी नजर आई एक बड़ी गुफा
मारिया ने सोचा-
क्यों ना लूं मैं इसमें ही खुद को छुपा।
ईश्वर को याद करती
पहुंची गुफा के अंदर
वहां मिला वनमानुष।
एक बड़ा भयंकर
पहले तो देख अजनबी को
उसने नथुने फुलाए
किंतु सुन प्रेम भरी वाणी,
वनमानुष जी मुस्कुराए।
धीरे-धीरे दोनों पर दोस्ती के रंग छायें
फिर तो सारी रात मारिया ने
इसके संग हंसते हुए गुजारी
पर मुश्किल कुछ नहीं था
वह तो रोज करती थी इसकी तैयारी।
क्योंकि ऐसे वनमानुषों से वह
होती रोज ही दो चार
यूरोप के एक चिड़ियाघर में
उम्र जो रही थी गुजार।
