वज़ूद ( अस्तित्व ) की तलाश
वज़ूद ( अस्तित्व ) की तलाश
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कई टुकड़ो मे
छोड़ जाता है वो
अपने को ,
जाते हुए बाहर को ..
मैं समेटती ..
उसमे मोजे ..
जूते ..
मैले रुमाल और बनियान
पहले अकसर ,
अब कभी कभी ..
बिस्तर पर गीला तौलिया ..
घंटो बाद भी , घर में
उसके वजूद की
गवाही देते ..
मैं शाम तक
सहेजती ..
शाम को वो ,
फिर बिखेर देता
अपने वजूद को ..
खप जाती
इसी में , मैं
भूल जाती
ढूंढना ...
अपना लापता वज़ूद . I
