विश्वास
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विश्वास अपनों पे ही होता है,कभी परायों पर नहीं होता,
पराये कब अपने हो जाते हैं,ये विश्वास ही नहीं होता।
कौन कहता है कि मुझे,तुम पर विश्वास नहीं है बाकी,
तुम्हारे विश्वास ने मुझे इस कदर, निकम्मा जो कर दिया।
कि घर से बाहर निकलने की, हिम्मत आ गई है मुझमें,
तुम्हारी वफ़ादारीयों ने, मुझे चौकन्ना जो कर दिया।
तुम मुझ पर विश्वास करो या, ना करो ये तुम पर निर्भर,
पलटा हुआ किताब का, मुझे तो पन्ना जो कर दिया।
--एस.दयाल सिंह--