विशवास की गांठ
विशवास की गांठ
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थोड़ा हंस भी लिया था
थोड़ा संवर भी लिया था
पर फिर से सब पर विश्वास आ गया
थोड़ी बहकावे में आने लगी थी
थोड़ा संभलने में लगी थी
पर फिर से सब पर विश्वास आ गया
थोड़ा झूठ समझने लगीी थी
थोड़ा सच जानने लगी थी
पर फिर से सब विश्वास करने लगी
थोड़ा जमाने के साथ चलने लगी थी
थोड़ी जिंदगी के पल समजने लगी थी
पर फिर भी सबको खुुशी बांंटने कि उम्मीदों में रहती थी!
