विरह मन
विरह मन
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विरह मन की वेदना से
तुम अपनी गिरहें
खोल दो,
हृदय अनुयायीं मन
वेदनाओं का तुम
अन्तस मन नवनिर्मित
आज बोल दो,
शब्दों से अपने शब्द भाव
अब विचाराधीन से
अपने घोल दो,
रिश्तों से निकाल तुम,
मन व्यथा को मन से
अपना निर्णय विचारों
सा खोल दो,
दर्द छलके आँखों में,
जिसके "हार्दिक"
जाकर उन्हें बोल दो।
