वह
वह
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एक छोटी खिड़की की रोशनी,
एक टूटी दीवार की खामोशी,
टाट पैबन्द और बरसाती,
कबाड़ के कुछ बिखरे टुकड़े,
ये है सब संग सुख-दुःख में उसके।
अपनी ज़रूरतों को वो अक्सर टटोलता है,
अपने बन्द बटुए और बक्से को,
बार-बार बड़ी ही हसरत से वो खोलता है।
जब-जब नन्हा शिशु उसका,
ख़ुश होकर मुठ्ठी खोलता है।
वह गरीब दर्द में भी
अपनी फीकी मुस्कान से भी,
अपनी नन्ही सी जान की आँखों में
सतरंगी खुशी घोलता है।
उसकी चिर मुस्कान के लिए,
इक गरीब दिन रात,
अपने दर्द पीछे धकेलता है।
की वह गरीब अक्सर,
अपने खाली बटुए और बक्से को
रह रह कर टटोलता है।
