वेदना
वेदना


माँ से बिटिया का
स्नेह होता है लाजवाब
बिटिया को सुलाती अपने आँचल में
लगता है जैसे फूलों के मध्य
पराग हो झोली में।
माँ की आवाज कोयल सी
और बिटिया की खिलखिलाहट
पायल की छुन -छुन सी
लगता है जैसे मधुर संगीत हो फिजाओं में।
माँ तो ममता की अविरल बहती नदी
बिटिया हो जैसे कलकल सी आवाज
निर्मल पावन जल की
लगता है जैसे पूजते आ रहे सदियों से इन्हे।
माँ होती चांदनी सी
और होती वेदना को समझने वाली
बिटिया हो सूरज की पहली किरण
दोनों देती है रोशनी
अपने-अपने पथ/कर्तव्य की
लगता है भ्रूण हत्या का अंधकार हटा रही हो
माँ / बिटिया से
जन्म लेते है कई रिश्ते
ये होती है समाज का आधार
दोनों के बिना होता है जीवन सूना
लगता है जैसे इनमे बसती जीवन की सांसे।