वार्षिकोत्सव की स्मृति
वार्षिकोत्सव की स्मृति
आज बोरड़ा में विदाई की बेला आ गई है
यहां पर वार्षिकोत्सव की घड़ी आ गई है
बरसों से था जिस पल का हमें इंतज़ार,
आख़िर में आज वो सुहानी बेला आ गई है।
आँखो में आंसू है अपार
दिल में हर्ष भी है अपार,
आज ये सुहानी बेला यहां आ गई है
आज बोरड़ा में विदाई की बेला आ गई है।
पूरे वर्ष दोस्तो हम औऱ आप साथ रहे हैं
आज बताने को कम पड़ रहे हैं जज्बात मेरे
आज आपसे बिछड़ने की घड़ी आ गई है
आप सबका साथ,सदा रहेगा मुझे याद
आप सब ही हो मेरी आखरी ज़ायदाद
आज हवा में भी नमी सी छा गई है
आज बोरड़ा में विदाई की बेला आ गई है।
वो बिना बात लड़ना-झगड़ना
वो बिना बात हंसना औऱ रोना
आज सीप से मोती की जुदाई की घड़ी आ गई है,
आगे पढूंगा,तभी तो में दोस्तों आगे बढ़ूँगा,
छोड़ना तो पड़ेगा कुछ पल साथ आपका
ये सोचकर ही आँखो से अक्षुधारा आ गई है,
आज बोरड़ा में विदाई की बेला आ गई है।
ख़ुशी में क्या रोना,क्या हंसना है,दोस्तों
अब तो लबों पर रोते रोते ही हंसी आ गई है
जिंदगी में भले ही हर सांस का मोल है,
पर आप साथियों की याद अनमोल है,
पुरानी यादों को याद कर,
बिना सावन बरसात आ गई है,
आज बोरडा़ में विदाई की बेला आ गई है।
जिंदगी में गर आगे बढ़ना है
अविराम तो चलना ही पड़ता है
हर अंधेरे में रोशनी होती है,यारों
बस दीपक सा हमें जलना पड़ता है
अब कुँए से निकलकर,
दरिया में तैरने की नाव आ गई है
आज बोरडा में विदाई की बेला आ गई है,
यंहा पर वार्षिकोत्सव की घड़ी आ गई है।
