उत्सव स्मृति
उत्सव स्मृति
1 min
340
एक सज्जन बहादुरी की, हांकते रहते डींगें थे
अपनी शेखी की हर पल, बढ़ाते रहते पींगें थे
दिवाली आई, हथेली अपनी, पर ही अनार जला लिया
अनार ने भी हाथ में फ़टकर, उसको सबक कड़ा दिया
दर्द में रहा तड़पता चीखता, चैन उसे ना मिल पाया
अस्पताल भागा तब जाकर, कुछ सुकून उसको आया
अक्ल आई तब जाकर आखिर, अब सबको शिक्षा देता है
अपनी सुरक्षा आप करो, शेखी में कुछ नही रखा है I
