उस्ताद नहीं मैं लफ्ज़ों का
उस्ताद नहीं मैं लफ्ज़ों का
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उस्ताद नहीं मैं लफ़्ज़ों का
ना जादूगर अल्फाज़ो का,
ना समझ मुझे है नज़्मों की
ना ज्ञान मुझे साज़ों का,
दिल में जो आता है
उकेर देता हूँ कागज़ पर,
ताकि न रह जाएं यूँ ही
जज़्बात मन में उलझ कर।
अभी आग़ाज़ किया है
वक़्त लगता है ख़रा होने में,
पौधा कुछ समय लेता है
पेड़ हरा भरा होने में।
धीमे धीमे अपनी जड़ें जमा लूँगा
इस हुनर को खुद में समा लूँगा।
