उसका होना महज इत्तेफाक था
उसका होना महज इत्तेफाक था
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यूं शांत लहरों में लिपट सी गई थी मेरी दुनियां,
जब जब खुशियों ने दस्तक दी,
मैं हर बार उन्हें ठुकराता गया ।
यूं बंद मुठ्ठी में वक्त को समेटे चल दिया था ,
वो रेत सा फिसला इस कदर,
दो बारा हाथ तक ना आया ।
ना जाने किसे दोष दूं किसे जिम्मेदार ठहराऊं ।
सौ गुनाह और कर बैठा,
अपनी बेगुनाही साबित करते करते ।
लापरवाह तो था पर बेपरवाह उसने बनाया था।
बस खुद का ख्याल ही नहीं आया,
किसी और की परवाह करते करते ।