Yashwant Nagesh

Others

2.5  

Yashwant Nagesh

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उसका होना महज इत्तेफाक था

उसका होना महज इत्तेफाक था

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यूं शांत लहरों में लिपट सी गई थी मेरी दुनियां,

जब जब खुशियों ने दस्तक दी, 

मैं हर बार उन्हें ठुकराता गया ।


यूं बंद मुठ्ठी में वक्त को समेटे चल दिया था ,

वो रेत सा फिसला इस कदर,

दो बारा हाथ तक ना आया ।


ना जाने किसे दोष दूं किसे जिम्मेदार ठहराऊं ।

सौ गुनाह और कर बैठा,

अपनी बेगुनाही साबित करते करते ।


लापरवाह तो था पर बेपरवाह उसने बनाया था।

बस खुद का ख्याल ही नहीं आया,

 किसी और की परवाह करते करते ।


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