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Rupesh Kumar

Others

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Rupesh Kumar

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उनकी बातो पर हम

उनकी बातो पर हम

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उनकी बातों पर हम तो चले जा रहे हैं ,

अपने कंधो पर अर्थी लिये जा रहे हैं !


न सोचते समझते कितने मूढ़ हम हैं ,

प्रेम के बोल पर हम लुटे जा रहे हैं !


उनके वादों का कोई भरोसा नहीं ,

मेरी नजरों से अब तो छुपे जा रहे हैं !


मंच खाली अभी है किस ऊर्वशी का ,

मेनका की नजरों मे बसे जा रहे हैं !


अब आयेगी मन मे बसी लाडली ,

सपने कुँवारे सजे जा रहे हैं !


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