टिप्पणी
टिप्पणी
पक्ष में लिखूं
या विपक्ष में लिखूं
बड़ी दुविधा है किस पक्ष में लिखूं
ये संभव नहीं कि
अस्तित्व में रहकर गौन रहूं
ज्वलंत मुद्दे पर मौन रहूं
लिखते लिखते कलम रूक जाती है
निष्पक्ष टिप्पणी से भी जी घबराता है
भय इस बात का नहीं कि
टिप्पणी प्रतिकूल होगी
डर इस बात का है कि
मेरी टिप्पणी भी
अंधभक्त चमचे की श्रेणी में होगी
यही सोच कर कम लिखता हूं
फिर लिखते लिखते लिख जाता हूं
पक्ष विपक्ष पर टिप्पणी कर जाता हूं
उपरोक्त श्रेणी में बांट दे मंजूर है मुझे
पर लोग तो गाली गलौज पर उतर आते हैं
तरस आए ऐसे टिप्पणीकार पर
इससे पहले मेरी संवेदना जाग जाती है
लोग असभ्य शब्द प्रति-टिप्पणी न करे
यह सोचकर अपने ही हाथों लिखे को
बेदर्दी से मिटा जाता हूं
पक्ष में लिखूं
या विपक्ष में लिखूं
बड़ी दुविधा है किस पक्ष में लिखूं
अंधभक्त या चमचे कहलाऊं
अच्छा है इससे टिप्पणी को ही मिटा जाऊं।
