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Dr. Razzak Shaikh 'Rahi'

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Dr. Razzak Shaikh 'Rahi'

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ठिकाना

ठिकाना

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अकेले हमें छोड़कर तुम जाना नहीं

ये ग़ज़ल हैं कोई मामूली तराना नहीं


मिलने चले आओ जमना किनारे

फिर से नया बहाना बनाना नहीं


हो जाएगी सुकून से प्यार की दो बातें

माहौल आजकल इतना सुहाना नहीं


अच्छे हैं हम अपनी वीरानियों में

हमें महफ़िलों में बुलाना नहीं


होता है बड़ा दम बद्दुआ में उनकी

मज़लूमों पर ज़ुल्म कभी ढाना नहीं


जाना है एक दिन दुनिया से बहुत दूर

'राही' ये तेरा ठिकाना नहीं


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