तरु वर
तरु वर
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कुछ बीज जब हमने लगाये
अंकुर आये मन को भाये
समय पर पानी और दे कर खाद
रोज रखते हम उनका ख्याल
हम भी बड़े होते गए तरुवर के संग
कभी खाए फल तो कभी झूले संग
तरु वर हर गम में साथ थे मेरे
खुश होता मैं भूल दुःख गहरे
बच्चें करते पिकनिक उसकी छांव
हरा हो गया मेरा मन और मेरा गांव.
