"तो फिर क्या बात थी"
"तो फिर क्या बात थी"
एक दिन यूँ ही खयाल आता है
वक्त कितना जल्दी गुजर जाता है।
काश गुज़रा वक्त वापिस ला पाती
तो फिर क्या बात थी...
एक छोटे से शहर में मेरा छोटा सा घर था
छोटे से आंगन में एक झूला हुआ करता था,
उस झूले में घंटो झूला करती थी।
काश उससे झूले में फिर झूल पाती
तो क्या बात थी..
माँ बुहत याद आती है
माँ के हाथ का खाना याद आता है
अमृत जैसा स्वाद है उसके खाने में
काश उसके हाथों का खाना फिर खा पाती
तो फिर क्या बात थी
भाई बहनों के साथ ढेर सारी यादें बनाई
घंटो खेलना,चीखना चिलाना,
बड़ा याद आता है
काश उन यादों को फिर जी पाती
तो फिर क्या बात थी..
पर ज़िन्दगी पीछे नहीं मुड़ती
आगे बढ़ती चली जाती है
कुछ अपनो को छोड़ आगे बढ़ती जाती है
काश उन अपनो को साथ लेकर चल पाती
तो फिर क्या बात थी।