तन्हां लम्हों में
तन्हां लम्हों में
ज़िंदगी का
ये लम्हा भी गुज़र गया
उम्र के इस दौर में सोचूं
और क्या क्या गुज़र गया
आज फिर बैठी हूं
करने को एक मुलाकात
मेरी डायरी के पन्नों से
तन्हा लम्हों में,,
न जाने कितने चराग़
रोज़ रोशन होते हैं...
मेरी डायरी के पन्नों पर..
तन्हा लम्हों में...
हर्फ़ों की महफ़िल मे
होता है मुसलसल
शब ए वस्ल का जश्न
खुद से रूबरू होकर
समेट लेती हूँ क़ायनात....
मेरी डायरी के पन्नों पर..
तन्हा लम्हों में....
एक एक हर्फ़
पढती हूँ कई कई बार...
झूम उठती हूँ
किसी पल को फ़िर जीकर...
और सहला देती वो लम्हा
जो लाया था सैलाब...
मौजूद हैं दर्द , तो मरहम भी...
मेरी डायरी के पन्नों पर..
तन्हा लम्हों में...
वक्त की करवटों से मिले ईनाम
सूखे हुए फ़ूलों के निशान
क़तरा क़तरा ज़िंदगी का
कुछ हादसे,कोई जीत,कोई मुकाम...
पैवस्त हर शिकस्त...
मेरी डायरी के पन्नों पर...
तन्हा लम्हों में....
फटे हुए पन्नों को
फिर से जोड़ लेती हूँ मैं..
कुछ सबक जो याद रखने हैं
उन पन्नों को थोड़ा मोड़ देती हूं मैं...
इल्तज़ा यही कि इसे..
कोई न पढ़े मेरे गुज़र जाने के बाद...
बेइंतहा दर्द होता है बिखर जाने के बाद...
ये है मुझसे मेरा मिलन....
मेरी डायरी के पन्नों पर...
तन्हा लम्हों में....