तमां न कीजिये
तमां न कीजिये
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नुक्ते-हलक-फ़रोशो से शिकवा न कीजिये दोस्तों !
खुद से भी इन्हें ढेरों-ढेरों शिकायत है।
इक-इक जुमला जैसे इक वार है,
क़ायनात भी इनसे बहुत शर्मशार है।
न फूटे किसी शै की शान में दो बोल भी,
तल्ख़ ज़ुबाँ पे छाई लफ़्ज़ों की ग़ुरबत है।
तमां न कीजिये इनपे
जादहे-मंज़िल पे हो नज़र अपनी,
ऐसे कांटे-कंकर ज़मीं पे बहुतायत है...!!